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दीपा मेडम -Hindi Sexy story
प्रेषिक : Rajbr1981
बाद मुर्दन के जन्नत मिले ना मिले ग़ालिब क्या पता
गाण्ड मार के इस दूसरी जन्नत का मज़ा तो लूट ही ले
बाथरूम की ओर जाते समय पीछे से उसके भारी और गोल मटोल नितम्बों की थिरकन देख कर तो मेरे दिल पर छुर्रियाँ ही चलने लगी। मैं जानता था पंजाबी लड़कियाँ गाण्ड भी बड़े प्यार से मरवा लेती हैं। और वैसे भी आजकल की लड़कियाँ शादी से पहले चूत मरवाने से तो परहेज करती हैं पर गाण्ड मरवाने के लिए अक्सर राज़ी हो जाती हैं। आप तो जानते ही हैं मैं गाण्ड मारने का कितना शौक़ीन हूँ। बस मधु ही मेरी इस इच्छा को पूरी नहीं करती थी बाकी तो मैंने जितनी भी लड़कियों या औरतों को चोदा है उनकी गाण्ड भी जरूर मारी है। इतनी खूबसूरत सांचे में ढली मांसल गाण्ड तो मैंने आज तक नहीं देखी थी। काश यह भी आज राज़ी हो जाए तो कसम से मैं तो इसकी जिन्दगी भर के लिए गुलामी ही कर लूं।
इसी कहानी से……
हमारी शादी को 4-5 महीने होने को आये थे और हम लगभग रोज़ ही मधुर मिलन (चुदाई) का आनंद लिया करते थे। मैंने मधुर को लगभग हर आसन में और घर के हर कोने में जी भर कर चोदा था। पता नहीं हम दोनों ने कामशास्त्र के कितने ही नए अध्याय लिखे होंगे। पर सच कहूं तो चुदाई से हम दोनों का ही मन नहीं भरा था। कई बार तो रात को मेरी बाहों में आते ही मधुर इतनी चुलबुली हो जाया करती थी कि मैं रति पूर्व क्रीड़ा भी बहुत ही कम कर पाता था और झट से अपना पप्पू उसकी लाडो में डाल कर प्रेम युद्ध शुरू कर दिया करता था।
एक बात आपको और बताना चाहूँगा। मधुर ने तो मुझे दूध पीने और शहद चाटने की ऐसी आदत डाल दी है कि उसके बिना तो अब मुझे नींद ही नहीं आती। और मधुर भी मलाई खाने की बहुत बड़ी शौक़ीन बन गई है। आप नहीं समझे ना ? चलो मैं विस्तार से समझाता हूँ :
हमारा दाम्पत्य जीवन (चुदाई अभियान) वैसे तो बहुत अच्छा चल रहा था पर मधु व्रत त्योहारों के चक्कर में बहुत पड़ी रहती है। आये दिन कोई न कोई व्रत रखती ही रहती है। ख़ास कर शुक्र और मंगलवार का व्रत तो वो जरूर रखती है। उसका मानना है कि इस व्रत से पति का शुक्र गृह शक्तिशाली रहता है। पर दिक्कत यह है कि उस रात वो मुझे कुछ भी नहीं करने देती। ना तो वो खुद मलाई खाती है और ना ही मुझे दूध पीने या शहद चाटने देती है।
लेकिन शनिवार की सुबह वह जल्दी उठ कर नहा लेती है और फिर मुझे एक चुम्बन के साथ जगाती है। कई बार तो उसकी खुली जुल्फें मेरे चहरे पर किसी काली घटा की तरह बिखर जाती हैं और फिर मैं उसे बाँहों में इतनी जोर से भींच लेता हूँ कि उसकी कामुक चित्कार ही निकल जाती है और फिर मैं उसे बिना रगड़े नहीं मानता। वो तो बस कुनमुनाती सी रह जाती है। और फिर वो रात (शनिवार) तो हम दोनों के लिए ही अति विशिष्ट और प्रतीक्षित होती है। उस रात हम दोनों आपस में एक दूसरे के कामांगों पर शहद लगा कर इतना चूसते हैं कि मधु तो इस दौरान 2-3 बार झड़ जाया करती है और मेरा भी कई बार उसके मुँह में ही विसर्जित हो जाया करता है जिसे वो किसी अमृत की तरह गटक लेती है।रविवार वाले दिन फिर हम दोनों साथ साथ नहाते हैं और फिर बाथरूम में भी खूब चूसा चुसाई के दौर के बाद एक बार फिर से गर्म पानी के फव्वारे के नीचे घंटों प्रेम मिलन करते रहते हैं। कई बार वो बाथटब में मेरी गोद में बैठ जाया करती है या फिर वो पानी की नल पकड़ कर या दीवाल के सहारे थोड़ी नीचे झुक कर अपने नितम्बों को थिरकाती रहती है और मैं उसके पीछे आकर उसे बाहों में भर लेता हूँ और फिर पप्पू और लाडो दोनों में महा संग्राम शुरू हो जाता है। उसके गोल मटोल नितम्बों के बीच उस भूरे छेद को खुलता बंद होता देख कर मेरा जी करता अपने पप्पू को उसमें ही ठोक दूँ। पर मैं उन पर सिवाय हाथ फिराने या नितम्बों पर चपत (हलकी थपकी) लगाने के कुछ नहीं कर पाता। पता नहीं उसे गाण्ड मरवाने के नाम से ही क्या चिढ़ थी कि मेरे बहुत मान मनोवल के बाद भी वो टस से मस नहीं होती थी। एक बात जब मैंने बहुत जोर दिया तो उसने तो मुझे यहाँ तक चेतावनी दे डाली थी कि अगर अब मैंने दुबारा उसे इस बारे में कहा तो वो मुझ से तलाक ही ले लेगी।
मेरा दिल्ली वाला दोस्त सत्य जीत (याद करें लिंगेश्वर की काल भैरवी) तो अक्सर मुझे उकसाता रहता था कि गुरु किसी दिन उल्टा पटक कर रगड़ डालो। शुरू शुरू में सभी पत्नियाँ नखरे करती हैं वो भी एक बार ना नुकर करेगी फिर देखना वो तो इसकी इतनी दीवानी हो जायेगी कि रोज़ करने को कहने लगेगी।
ओह …यार जीत सभी की किस्मत तुम्हारे जैसी नहीं होती भाई।
एक और दिक्कत थी। शुरू शुरू में तो हम बिना निरोध (कंडोम) के सम्भोग कर लिया करते थे पर अब तो वो बिना निरोध के मुझे चोदने ही नहीं देती। और माहवारी के उन 3-4 दिनों में तो पता नहीं उसे क्या बिच्छू काट खाते हैं वो तो मधु से मधु मक्खी ही बन जाती है। चुदाई की बात तो छोड़ो वो तो अपने पुट्ठे पर हाथ भी नहीं धरने देती। और इसलिए पिछले 3 दिनों से हमारा चुदाई कार्यक्रम बिल्कुल बंद था और आज उसे जयपुर जाना था, आप मेरी हालत समझ सकते हैं।
आप की जानकारी के लिए बता दूं राजस्थान में होली के बाद गणगौर उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। कुंवारी लड़कियाँ और नव विवाहिताएं अपने पीहर (मायके) में आकर विशेष रूप से 16 दिन तक गणगौर का पूजन करती हैं मैं तो मधु को भेजने के मूड में कतई नहीं था और ना ही वो जाना चाहती थी पर वो कहने लगी कि विवाह को 3-4 महीने हो गए हैं वो इस बहाने भैया और भाभी से भी मिल आएगी।
मैं मरता क्या करता। मैं इतनी लम्बी छुट्टी लेकर उसके साथ नहीं जा सकता था तो हमने तय किया कि मैं गणगोर उत्सव के 1-2 दिन पहले जयपुर आ जाऊँगा और फिर उसे अपने साथ ही लेता आऊंगा। मैंने जब उसे कहा कि वहाँ तुम्हें मेरे साथ ही सोना पड़ेगा तो वो तो मारे शर्म के गुलज़ार ही हो गई और कहने लगी,”हटो परे … मैं भला वहाँ तुम्हारे साथ कैसे सो सकती हूँ?”
“क्यों ?”
“नहीं… मुझे बहुत लाज आएगी ? वहाँ तो रमेश भैया, सुधा भाभी और मिक्की (तीन चुम्बन) भी होंगी ना? उनके सामने मैं … ना बाबा ना … मैं नहीं आ सकूंगी … यहाँ आने के बाद जो करना हो कर लेना !”
“तो फिर मैं जयपुर नहीं आऊंगा !” मैंने बनावती गुस्से से कहा।
“ओह …?” वो कातर (निरीह-उदास) नज़रों से मुझे देखने लगी।
“एक काम हो सकता है?” उसे उदास देख कर मैंने कहा।
“क्या?”
“वो सभी लोग तो नीचे सोते हैं। मैं ऊपर चौबारे में सोऊंगा तो तुम रात को चुपके से दूध पिलाने के बहाने मेरे पास आ जाना और फिर 3-4 बार जम कर चुदवाने के बाद वापस चली जाना !” खाते हुए मैंने उसे बाहों में भर लेना चाहा।
“हटो परे … गंदे कहीं के !” मधु ने मुझे परे धकेलते हुए कहा।
“क्यों … इसमें गन्दा क्या है?”
“ओह .. प्रेम … तुम भी… ना.. चलो ठीक है पर तुम कमरे की बत्ती बिल्कुल बंद रखना … मैं बस थोड़ी देर के लिए ही आ पाऊँगी !” मधु होले होले मुस्कुरा रही थी।
प्रेषिक : Rajbr1981
बाद मुर्दन के जन्नत मिले ना मिले ग़ालिब क्या पता
गाण्ड मार के इस दूसरी जन्नत का मज़ा तो लूट ही ले
बाथरूम की ओर जाते समय पीछे से उसके भारी और गोल मटोल नितम्बों की थिरकन देख कर तो मेरे दिल पर छुर्रियाँ ही चलने लगी। मैं जानता था पंजाबी लड़कियाँ गाण्ड भी बड़े प्यार से मरवा लेती हैं। और वैसे भी आजकल की लड़कियाँ शादी से पहले चूत मरवाने से तो परहेज करती हैं पर गाण्ड मरवाने के लिए अक्सर राज़ी हो जाती हैं। आप तो जानते ही हैं मैं गाण्ड मारने का कितना शौक़ीन हूँ। बस मधु ही मेरी इस इच्छा को पूरी नहीं करती थी बाकी तो मैंने जितनी भी लड़कियों या औरतों को चोदा है उनकी गाण्ड भी जरूर मारी है। इतनी खूबसूरत सांचे में ढली मांसल गाण्ड तो मैंने आज तक नहीं देखी थी। काश यह भी आज राज़ी हो जाए तो कसम से मैं तो इसकी जिन्दगी भर के लिए गुलामी ही कर लूं।
इसी कहानी से……
हमारी शादी को 4-5 महीने होने को आये थे और हम लगभग रोज़ ही मधुर मिलन (चुदाई) का आनंद लिया करते थे। मैंने मधुर को लगभग हर आसन में और घर के हर कोने में जी भर कर चोदा था। पता नहीं हम दोनों ने कामशास्त्र के कितने ही नए अध्याय लिखे होंगे। पर सच कहूं तो चुदाई से हम दोनों का ही मन नहीं भरा था। कई बार तो रात को मेरी बाहों में आते ही मधुर इतनी चुलबुली हो जाया करती थी कि मैं रति पूर्व क्रीड़ा भी बहुत ही कम कर पाता था और झट से अपना पप्पू उसकी लाडो में डाल कर प्रेम युद्ध शुरू कर दिया करता था।
एक बात आपको और बताना चाहूँगा। मधुर ने तो मुझे दूध पीने और शहद चाटने की ऐसी आदत डाल दी है कि उसके बिना तो अब मुझे नींद ही नहीं आती। और मधुर भी मलाई खाने की बहुत बड़ी शौक़ीन बन गई है। आप नहीं समझे ना ? चलो मैं विस्तार से समझाता हूँ :
हमारा दाम्पत्य जीवन (चुदाई अभियान) वैसे तो बहुत अच्छा चल रहा था पर मधु व्रत त्योहारों के चक्कर में बहुत पड़ी रहती है। आये दिन कोई न कोई व्रत रखती ही रहती है। ख़ास कर शुक्र और मंगलवार का व्रत तो वो जरूर रखती है। उसका मानना है कि इस व्रत से पति का शुक्र गृह शक्तिशाली रहता है। पर दिक्कत यह है कि उस रात वो मुझे कुछ भी नहीं करने देती। ना तो वो खुद मलाई खाती है और ना ही मुझे दूध पीने या शहद चाटने देती है।
लेकिन शनिवार की सुबह वह जल्दी उठ कर नहा लेती है और फिर मुझे एक चुम्बन के साथ जगाती है। कई बार तो उसकी खुली जुल्फें मेरे चहरे पर किसी काली घटा की तरह बिखर जाती हैं और फिर मैं उसे बाँहों में इतनी जोर से भींच लेता हूँ कि उसकी कामुक चित्कार ही निकल जाती है और फिर मैं उसे बिना रगड़े नहीं मानता। वो तो बस कुनमुनाती सी रह जाती है। और फिर वो रात (शनिवार) तो हम दोनों के लिए ही अति विशिष्ट और प्रतीक्षित होती है। उस रात हम दोनों आपस में एक दूसरे के कामांगों पर शहद लगा कर इतना चूसते हैं कि मधु तो इस दौरान 2-3 बार झड़ जाया करती है और मेरा भी कई बार उसके मुँह में ही विसर्जित हो जाया करता है जिसे वो किसी अमृत की तरह गटक लेती है।रविवार वाले दिन फिर हम दोनों साथ साथ नहाते हैं और फिर बाथरूम में भी खूब चूसा चुसाई के दौर के बाद एक बार फिर से गर्म पानी के फव्वारे के नीचे घंटों प्रेम मिलन करते रहते हैं। कई बार वो बाथटब में मेरी गोद में बैठ जाया करती है या फिर वो पानी की नल पकड़ कर या दीवाल के सहारे थोड़ी नीचे झुक कर अपने नितम्बों को थिरकाती रहती है और मैं उसके पीछे आकर उसे बाहों में भर लेता हूँ और फिर पप्पू और लाडो दोनों में महा संग्राम शुरू हो जाता है। उसके गोल मटोल नितम्बों के बीच उस भूरे छेद को खुलता बंद होता देख कर मेरा जी करता अपने पप्पू को उसमें ही ठोक दूँ। पर मैं उन पर सिवाय हाथ फिराने या नितम्बों पर चपत (हलकी थपकी) लगाने के कुछ नहीं कर पाता। पता नहीं उसे गाण्ड मरवाने के नाम से ही क्या चिढ़ थी कि मेरे बहुत मान मनोवल के बाद भी वो टस से मस नहीं होती थी। एक बात जब मैंने बहुत जोर दिया तो उसने तो मुझे यहाँ तक चेतावनी दे डाली थी कि अगर अब मैंने दुबारा उसे इस बारे में कहा तो वो मुझ से तलाक ही ले लेगी।
मेरा दिल्ली वाला दोस्त सत्य जीत (याद करें लिंगेश्वर की काल भैरवी) तो अक्सर मुझे उकसाता रहता था कि गुरु किसी दिन उल्टा पटक कर रगड़ डालो। शुरू शुरू में सभी पत्नियाँ नखरे करती हैं वो भी एक बार ना नुकर करेगी फिर देखना वो तो इसकी इतनी दीवानी हो जायेगी कि रोज़ करने को कहने लगेगी।
ओह …यार जीत सभी की किस्मत तुम्हारे जैसी नहीं होती भाई।
एक और दिक्कत थी। शुरू शुरू में तो हम बिना निरोध (कंडोम) के सम्भोग कर लिया करते थे पर अब तो वो बिना निरोध के मुझे चोदने ही नहीं देती। और माहवारी के उन 3-4 दिनों में तो पता नहीं उसे क्या बिच्छू काट खाते हैं वो तो मधु से मधु मक्खी ही बन जाती है। चुदाई की बात तो छोड़ो वो तो अपने पुट्ठे पर हाथ भी नहीं धरने देती। और इसलिए पिछले 3 दिनों से हमारा चुदाई कार्यक्रम बिल्कुल बंद था और आज उसे जयपुर जाना था, आप मेरी हालत समझ सकते हैं।
आप की जानकारी के लिए बता दूं राजस्थान में होली के बाद गणगौर उत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। कुंवारी लड़कियाँ और नव विवाहिताएं अपने पीहर (मायके) में आकर विशेष रूप से 16 दिन तक गणगौर का पूजन करती हैं मैं तो मधु को भेजने के मूड में कतई नहीं था और ना ही वो जाना चाहती थी पर वो कहने लगी कि विवाह को 3-4 महीने हो गए हैं वो इस बहाने भैया और भाभी से भी मिल आएगी।
मैं मरता क्या करता। मैं इतनी लम्बी छुट्टी लेकर उसके साथ नहीं जा सकता था तो हमने तय किया कि मैं गणगोर उत्सव के 1-2 दिन पहले जयपुर आ जाऊँगा और फिर उसे अपने साथ ही लेता आऊंगा। मैंने जब उसे कहा कि वहाँ तुम्हें मेरे साथ ही सोना पड़ेगा तो वो तो मारे शर्म के गुलज़ार ही हो गई और कहने लगी,”हटो परे … मैं भला वहाँ तुम्हारे साथ कैसे सो सकती हूँ?”
“क्यों ?”
“नहीं… मुझे बहुत लाज आएगी ? वहाँ तो रमेश भैया, सुधा भाभी और मिक्की (तीन चुम्बन) भी होंगी ना? उनके सामने मैं … ना बाबा ना … मैं नहीं आ सकूंगी … यहाँ आने के बाद जो करना हो कर लेना !”
“तो फिर मैं जयपुर नहीं आऊंगा !” मैंने बनावती गुस्से से कहा।
“ओह …?” वो कातर (निरीह-उदास) नज़रों से मुझे देखने लगी।
“एक काम हो सकता है?” उसे उदास देख कर मैंने कहा।
“क्या?”
“वो सभी लोग तो नीचे सोते हैं। मैं ऊपर चौबारे में सोऊंगा तो तुम रात को चुपके से दूध पिलाने के बहाने मेरे पास आ जाना और फिर 3-4 बार जम कर चुदवाने के बाद वापस चली जाना !” खाते हुए मैंने उसे बाहों में भर लेना चाहा।
“हटो परे … गंदे कहीं के !” मधु ने मुझे परे धकेलते हुए कहा।
“क्यों … इसमें गन्दा क्या है?”
“ओह .. प्रेम … तुम भी… ना.. चलो ठीक है पर तुम कमरे की बत्ती बिल्कुल बंद रखना … मैं बस थोड़ी देर के लिए ही आ पाऊँगी !” मधु होले होले मुस्कुरा रही थी।
मैं जानता था उसे भी मेरा यह प्रस्ताव जम गया है। इसका एक कारण था।
मधु चुदाई के बाद लगभग रोज़ ही मुझे छुहारे मिला गर्म दूध जरुर पिलाया करती है। वो कहती है इसके पीने से आदमी सदा जवान बना रहता है। वैसे मैं तो सीधे उसके दुग्धकलशों से दूध पीने का आदि बन गया था पर चलो उसका मेरे पास आने का यह बहाना बहुत ही सटीक था।
मधु के जयपुर चले जाने के बाद वो 10-15 दिन मैंने कितनी मुश्किल से बिताये थे, मैं ही जानता हूँ। उसकी याद तो घर के हर कोने में बसी थी। हम रोज़ ही घंटों फ़ोन पर बातें और चूमा चाटी भी करते और उन सुहानी यादों को एक बार फिर से ताज़ा कर लिया करते।
मैं गणगोर उत्सव से 2 दिन पहले सुबह सुबह ही जयपुर पहुँच था। आप सभी को वो छप्पनछुरी “दीपा मेम साब” तो जरुर याद होगी ? ओह … मैंने बताया तो था ? अरे भई मैं सुधा भाभी की छोटी बहन दीपा की बात कर रहा हूँ जिसे सभी ‘दीपा मेम साब’ के नाम से बुलाते हैं ? पूरी पटाका (आइटम बम) लगती है जैसे लिम्का की बोतल हो। और उसके नखरे तो बस बल्ले बल्ले … होते हैं। नाक पर मक्खी नहीं बैठने देती। दिन में कम से कम 6 बार तो पेंटी बदलती होगी।
दीपा में साब अहमदाबाद में एम बी ए कर रही है पर आजकल परीक्षा पूर्व की छुट्टियों में जयपुर में ही जलवा अफरोज थी। एक बार मेरे साथ उसकी शादी का प्रस्ताव भी आया था पर मधु ने बाज़ी मार ली थी।
सच कहूं तो उसके नितम्ब तो जीन्स और कच्छी में संभाले ही नहीं संभलते। साली के क्या मस्त कूल्हे और मम्मे हैं। उनकी लचक देख कर तो बंद अपने होश-ओ-हवास ही खो बैठे। और ख़ास कर उसके लचक कर चलने का अंदाज़ तो इतना कातिलाना था कि उसे देख कर मुझे अपनी जांघों पर अखबार रखना पड़ा था। जब कभी वो पानी या नाश्ता देने के बहाने झुकती है तो उसके गोल गोल कंधारी अनारों को देख कर तो मुँह में पानी ही टपकने लगता है। पंजाबी लडकियाँ तो वैसे भी दिलफेंक और आशिकाना मिजाज़ की होती हैं मुझे तो पूरा यकीन है दीपा कॉलेज के होस्टल में अछूती तो नहीं बची होगी।
दिन में रमेश (मेरा साला) तो 3-4 दिनों के लिए टूर पर निकल गए और मधु अपनी भाभी के साथ उसके कमरे में ही चिपकी रही। पता नहीं दोनों सारा दिन क्या खुसर-फुसर करती रहती हैं। मेरे पास दीपा मेम साब और मिक्की के साथ कैरम बोट और लूडो खेलने के अलावा कोई काम नहीं था। दीपा ने जीन का निक्कर पहन रखा था जिसमें उसकी गोरी गोरी पुष्ट जांघें तो इतनी चिकनी लग रही थी जैसे संग-ए-मरमर की बनी हों। उसकी जाँघों के रंग को देख कर तो उसकी चूत के रंग का अंदाज़ा लगाना कतई मुश्किल नहीं था। मेरा अंदाज़ा था कि उसने अन्दर पेंटी नहीं डाली होगी। उसने कॉटन की शर्ट पहन रखी थी जिसके आगे के दो बटन खुले थे। कई बार खेलते समय वो घुटनों के बल बैठी जब थोड़ा आगे झुक जाती तो उसके भारी उरोज मुझे ललचाने लगते। वो फिर जब कनखियों से मेरी ओर देखती तो मैं ऐसा नाटक करता जैसे मैंने कुछ देखा ही ना हो। पता नहीं उसके मन में क्या था पर मैं तो यही सोच रहा था कि काश एक रात के लिए मेरी बाहों में आ जाए तो मैं इसे उल्टा पटक कर अपने दबंग लण्ड से इसकी गाण्ड मार कर अपना जयपुर आना और अपना जीवन दोनों को धन्य कर लूं।
काश यह संभव हो पाता। मुझे ग़ालिब का एक शेर याद आ रहा है :
बाद मुर्दन के जन्नत मिले ना मिले ग़ालिब क्या पता
गाण्ड मार के इस दूसरी जन्नत का मज़ा तो लूट ही ले !
शाम को हम सभी साथ बैठे चाय पी रहे थे। दीपा तो पूरी मुटियार बनी थी। गुलाबी रंग की पटियाला सलवार और हरे रंग की कुर्ती में उसका जलवा दीदा-ए-वार (देखने लायक) था। दीपा अपने साथ मुझे डांस करने को कहने लगी।
मैंने उसे बताया कि मुझे कोई ज्यादा डांस वांस नहीं आता तो वो बोली “यह सब तो मधुर की गलती है।”
“क्यों ? इसमें भला मेरी क्या गलती है ?” मधु ने तुनकते हुए कहा।
“सभी पत्नियाँ अपने पतियों को अपनी अंगुली पर नचाती हैं यह बात तो सभी जानते हैं !”
उसकी इस बात पर सभी हंसने लगे। फिर दीपा ने “ये काली काली आँखें गोरे गोरे गाल … देखा जो तुम्हें जानम हुआ है बुरा हाल” पर जो ठुमके लगाए कि मेरा दिल तो यह गाने को करने लगा “ये काली काली झांटे … ये गोरी गोरी गाण्ड …”
मधु चुदाई के बाद लगभग रोज़ ही मुझे छुहारे मिला गर्म दूध जरुर पिलाया करती है। वो कहती है इसके पीने से आदमी सदा जवान बना रहता है। वैसे मैं तो सीधे उसके दुग्धकलशों से दूध पीने का आदि बन गया था पर चलो उसका मेरे पास आने का यह बहाना बहुत ही सटीक था।
मधु के जयपुर चले जाने के बाद वो 10-15 दिन मैंने कितनी मुश्किल से बिताये थे, मैं ही जानता हूँ। उसकी याद तो घर के हर कोने में बसी थी। हम रोज़ ही घंटों फ़ोन पर बातें और चूमा चाटी भी करते और उन सुहानी यादों को एक बार फिर से ताज़ा कर लिया करते।
मैं गणगोर उत्सव से 2 दिन पहले सुबह सुबह ही जयपुर पहुँच था। आप सभी को वो छप्पनछुरी “दीपा मेम साब” तो जरुर याद होगी ? ओह … मैंने बताया तो था ? अरे भई मैं सुधा भाभी की छोटी बहन दीपा की बात कर रहा हूँ जिसे सभी ‘दीपा मेम साब’ के नाम से बुलाते हैं ? पूरी पटाका (आइटम बम) लगती है जैसे लिम्का की बोतल हो। और उसके नखरे तो बस बल्ले बल्ले … होते हैं। नाक पर मक्खी नहीं बैठने देती। दिन में कम से कम 6 बार तो पेंटी बदलती होगी।
दीपा में साब अहमदाबाद में एम बी ए कर रही है पर आजकल परीक्षा पूर्व की छुट्टियों में जयपुर में ही जलवा अफरोज थी। एक बार मेरे साथ उसकी शादी का प्रस्ताव भी आया था पर मधु ने बाज़ी मार ली थी।
सच कहूं तो उसके नितम्ब तो जीन्स और कच्छी में संभाले ही नहीं संभलते। साली के क्या मस्त कूल्हे और मम्मे हैं। उनकी लचक देख कर तो बंद अपने होश-ओ-हवास ही खो बैठे। और ख़ास कर उसके लचक कर चलने का अंदाज़ तो इतना कातिलाना था कि उसे देख कर मुझे अपनी जांघों पर अखबार रखना पड़ा था। जब कभी वो पानी या नाश्ता देने के बहाने झुकती है तो उसके गोल गोल कंधारी अनारों को देख कर तो मुँह में पानी ही टपकने लगता है। पंजाबी लडकियाँ तो वैसे भी दिलफेंक और आशिकाना मिजाज़ की होती हैं मुझे तो पूरा यकीन है दीपा कॉलेज के होस्टल में अछूती तो नहीं बची होगी।
दिन में रमेश (मेरा साला) तो 3-4 दिनों के लिए टूर पर निकल गए और मधु अपनी भाभी के साथ उसके कमरे में ही चिपकी रही। पता नहीं दोनों सारा दिन क्या खुसर-फुसर करती रहती हैं। मेरे पास दीपा मेम साब और मिक्की के साथ कैरम बोट और लूडो खेलने के अलावा कोई काम नहीं था। दीपा ने जीन का निक्कर पहन रखा था जिसमें उसकी गोरी गोरी पुष्ट जांघें तो इतनी चिकनी लग रही थी जैसे संग-ए-मरमर की बनी हों। उसकी जाँघों के रंग को देख कर तो उसकी चूत के रंग का अंदाज़ा लगाना कतई मुश्किल नहीं था। मेरा अंदाज़ा था कि उसने अन्दर पेंटी नहीं डाली होगी। उसने कॉटन की शर्ट पहन रखी थी जिसके आगे के दो बटन खुले थे। कई बार खेलते समय वो घुटनों के बल बैठी जब थोड़ा आगे झुक जाती तो उसके भारी उरोज मुझे ललचाने लगते। वो फिर जब कनखियों से मेरी ओर देखती तो मैं ऐसा नाटक करता जैसे मैंने कुछ देखा ही ना हो। पता नहीं उसके मन में क्या था पर मैं तो यही सोच रहा था कि काश एक रात के लिए मेरी बाहों में आ जाए तो मैं इसे उल्टा पटक कर अपने दबंग लण्ड से इसकी गाण्ड मार कर अपना जयपुर आना और अपना जीवन दोनों को धन्य कर लूं।
काश यह संभव हो पाता। मुझे ग़ालिब का एक शेर याद आ रहा है :
बाद मुर्दन के जन्नत मिले ना मिले ग़ालिब क्या पता
गाण्ड मार के इस दूसरी जन्नत का मज़ा तो लूट ही ले !
शाम को हम सभी साथ बैठे चाय पी रहे थे। दीपा तो पूरी मुटियार बनी थी। गुलाबी रंग की पटियाला सलवार और हरे रंग की कुर्ती में उसका जलवा दीदा-ए-वार (देखने लायक) था। दीपा अपने साथ मुझे डांस करने को कहने लगी।
मैंने उसे बताया कि मुझे कोई ज्यादा डांस वांस नहीं आता तो वो बोली “यह सब तो मधुर की गलती है।”
“क्यों ? इसमें भला मेरी क्या गलती है ?” मधु ने तुनकते हुए कहा।
“सभी पत्नियाँ अपने पतियों को अपनी अंगुली पर नचाती हैं यह बात तो सभी जानते हैं !”
उसकी इस बात पर सभी हंसने लगे। फिर दीपा ने “ये काली काली आँखें गोरे गोरे गाल … देखा जो तुम्हें जानम हुआ है बुरा हाल” पर जो ठुमके लगाए कि मेरा दिल तो यह गाने को करने लगा “ये काली काली झांटे … ये गोरी गोरी गाण्ड …”
बाद मुर्दन के जन्नत मिले ना मिले ग़ालिब क्या पता
गाण्ड मार के इस दूसरी जन्नत का मज़ा तो लूट ही ले !
शाम को हम सभी साथ बैठे चाय पी रहे थे। दीपा तो पूरी मुटियार बनी थी। गुलाबी रंग की पटियाला सलवार और हरे रंग की कुर्ती में उसका जलवा दीदा-ए-वार (देखने लायक) था। दीपा अपने साथ मुझे डांस करने को कहने लगी।
मैंने उसे बताया कि मुझे कोई ज्यादा डांस वांस नहीं आता तो वो बोली “यह सब तो मधुर की गलती है।”
“क्यों ? इसमें भला मेरी क्या गलती है ?” मधु ने तुनकते हुए कहा।
“सभी पत्नियाँ अपने पतियों को अपनी अंगुली पर नचाती हैं यह बात तो सभी जानते हैं !”
उसकी इस बात पर सभी हंसने लगे। फिर दीपा ने “ये काली काली आँखें गोरे गोरे गाल … देखा जो तुम्हें जानम हुआ है बुरा हाल” पर जो ठुमके लगाए कि मेरा दिल तो यह गाने को करने लगा “ये काली काली झांटे … ये गोरी गोरी गाण्ड …”
सच कहूँ तो उसके नितम्बों को देख कर तो मैं इतना उत्तेजित हो गया था कि एक बार तो मेरा मन बाथरूम हो आने को करने लगा। मेरा तो मन कर रहा था कि डांस के बहाने इसे पकड़ कर अपनी बाहों में भींच ही लूँ !
वैसे मधुर भी बहुत अच्छा डांस करती है पर आज उसने पता नहीं क्यों डांस नहीं किया वरना तो वो ऐसा कोई मौका कभी नहीं चूकती।
खाना खाने के बाद रात को कोई 11 बजे दीपा और मिक्की अपने कमरे में चली गई थी। मैं भी मधु को दूध पिला जाने का इशारा करना चाहता था पर वो कहीं दिखाई नहीं दे रही थी।
मैं सोने के लिए ऊपर चौबारे में चला आया। हालांकि मौसम में अभी भी थोड़ी ठंडक जरुर थी पर मैंने अपने कपड़े उतार दिए थे और मैं नंगधडंग बिस्तर पर बैठा मधु के आने का इंतज़ार करने लगा। मेरा लण्ड तो आज किसी अड़ियल टट्टू की तरह खड़ा था। मैं उसे हाथ में पकड़े समझा रहा था कि बेटा बस थोडा सा सब्र और कर ले तेरी लाडो आती ही होगी। मेरे अन्दर पिछले 10-15 दिनों से जो लावा कुलबुला रहा था मुझे लगा अगर उसे जल्दी ही नहीं निकाला गया तो मेरी नसें ही फट पड़ेंगी। आज मैंने मन में ठान लिया था कि मधु के कमरे में आते ही चूमाचाटी का झंझट छोड़ कर एक बार उसे बाहों में भर कर कसकर जोर जोर से रगडूंगा।
मैं अभी इन खयालों में डूबा ही था कि मुझे किसी के आने की पदचाप सुनाई दी। वो सर झुकाए हाथों में थर्मस और एक गिलास पकड़े धीमे क़दमों से कमरे में आ गई। कमरे में अँधेरा ही था मैंने बत्ती नहीं जलाई थी।
जैसे ही वो बितर के पास पड़ी छोटी स्टूल पर थर्मस और गिलास रखने को झुकी मैंने उसे पीछे से अपनी बाहों में जकड़ लिया। मेरा लण्ड उसके मोटे मोटे नितम्बों की खाई से जा टकराया। मैंने तड़ातड़ कई चुम्बन उसकी पीठ और गर्दन पर ही ले लिए और एक हाथ नीचा करके उसके उरोजों को पकड़ लिया और दूसरे हाथ से उसकी लाडो को भींच लिया। उसने पतली सी नाइटी पहन रखी थी और अन्दर ब्रा और पेंटी नहीं पहनी थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उसके नितम्ब और उरोज इन 10-15 दिनों में इतने बड़े बड़े और भारी कैसे हो गए। कहीं मेरा भ्रम तो नहीं। मैंने अपनी एक अंगुली नाइटी के ऊपर से ही उसकी लाडो में घुसाने की कोशिश करते हुए उसे पलंग पर पटक लेने का प्रयास किया। वह थोड़ी कसमसाई और अपने आप को छुड़ाने की कोशिश करने लगी। इसी आपाधापी में उसकी एक हलकी सी चीख पूरे कमरे में गूँज गई ……
“ऊईईई… ईईईई … जीजू ये क्या कर रहे हो…….? छोड़ो मुझे … !”
मैं तो उस अप्रत्याशित आवाज को सुनकर हड़बड़ा ही गया। वो मेरी पकड़ से निकल गई और उसने दरवाजे के पास लगे लाईट के बटन को ऑन कर दिया। मैं तो मुँह बाए खड़ा ही रह गया। लाईट जलने के बाद मुझे होश आया कि मैं तो नंग धडंग ही खड़ा हूँ और मेरा 7 इंच का लण्ड कुतुबमीनार की तरह खड़ा जैसे आये हुए मेहमान को सलामी दे रहा है। मैंने झट से पास रखी लुंगी अपनी कमर पर लपेट ली।
“ओह … ब …म… दीपा तुम ?”
“जीजू … कम से कम देख तो लेना था ?”
“वो … स .. सॉरी … मुझे लगा मधु होगी ?”
गाण्ड मार के इस दूसरी जन्नत का मज़ा तो लूट ही ले !
शाम को हम सभी साथ बैठे चाय पी रहे थे। दीपा तो पूरी मुटियार बनी थी। गुलाबी रंग की पटियाला सलवार और हरे रंग की कुर्ती में उसका जलवा दीदा-ए-वार (देखने लायक) था। दीपा अपने साथ मुझे डांस करने को कहने लगी।
मैंने उसे बताया कि मुझे कोई ज्यादा डांस वांस नहीं आता तो वो बोली “यह सब तो मधुर की गलती है।”
“क्यों ? इसमें भला मेरी क्या गलती है ?” मधु ने तुनकते हुए कहा।
“सभी पत्नियाँ अपने पतियों को अपनी अंगुली पर नचाती हैं यह बात तो सभी जानते हैं !”
उसकी इस बात पर सभी हंसने लगे। फिर दीपा ने “ये काली काली आँखें गोरे गोरे गाल … देखा जो तुम्हें जानम हुआ है बुरा हाल” पर जो ठुमके लगाए कि मेरा दिल तो यह गाने को करने लगा “ये काली काली झांटे … ये गोरी गोरी गाण्ड …”
सच कहूँ तो उसके नितम्बों को देख कर तो मैं इतना उत्तेजित हो गया था कि एक बार तो मेरा मन बाथरूम हो आने को करने लगा। मेरा तो मन कर रहा था कि डांस के बहाने इसे पकड़ कर अपनी बाहों में भींच ही लूँ !
वैसे मधुर भी बहुत अच्छा डांस करती है पर आज उसने पता नहीं क्यों डांस नहीं किया वरना तो वो ऐसा कोई मौका कभी नहीं चूकती।
खाना खाने के बाद रात को कोई 11 बजे दीपा और मिक्की अपने कमरे में चली गई थी। मैं भी मधु को दूध पिला जाने का इशारा करना चाहता था पर वो कहीं दिखाई नहीं दे रही थी।
मैं सोने के लिए ऊपर चौबारे में चला आया। हालांकि मौसम में अभी भी थोड़ी ठंडक जरुर थी पर मैंने अपने कपड़े उतार दिए थे और मैं नंगधडंग बिस्तर पर बैठा मधु के आने का इंतज़ार करने लगा। मेरा लण्ड तो आज किसी अड़ियल टट्टू की तरह खड़ा था। मैं उसे हाथ में पकड़े समझा रहा था कि बेटा बस थोडा सा सब्र और कर ले तेरी लाडो आती ही होगी। मेरे अन्दर पिछले 10-15 दिनों से जो लावा कुलबुला रहा था मुझे लगा अगर उसे जल्दी ही नहीं निकाला गया तो मेरी नसें ही फट पड़ेंगी। आज मैंने मन में ठान लिया था कि मधु के कमरे में आते ही चूमाचाटी का झंझट छोड़ कर एक बार उसे बाहों में भर कर कसकर जोर जोर से रगडूंगा।
मैं अभी इन खयालों में डूबा ही था कि मुझे किसी के आने की पदचाप सुनाई दी। वो सर झुकाए हाथों में थर्मस और एक गिलास पकड़े धीमे क़दमों से कमरे में आ गई। कमरे में अँधेरा ही था मैंने बत्ती नहीं जलाई थी।
जैसे ही वो बितर के पास पड़ी छोटी स्टूल पर थर्मस और गिलास रखने को झुकी मैंने उसे पीछे से अपनी बाहों में जकड़ लिया। मेरा लण्ड उसके मोटे मोटे नितम्बों की खाई से जा टकराया। मैंने तड़ातड़ कई चुम्बन उसकी पीठ और गर्दन पर ही ले लिए और एक हाथ नीचा करके उसके उरोजों को पकड़ लिया और दूसरे हाथ से उसकी लाडो को भींच लिया। उसने पतली सी नाइटी पहन रखी थी और अन्दर ब्रा और पेंटी नहीं पहनी थी। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि उसके नितम्ब और उरोज इन 10-15 दिनों में इतने बड़े बड़े और भारी कैसे हो गए। कहीं मेरा भ्रम तो नहीं। मैंने अपनी एक अंगुली नाइटी के ऊपर से ही उसकी लाडो में घुसाने की कोशिश करते हुए उसे पलंग पर पटक लेने का प्रयास किया। वह थोड़ी कसमसाई और अपने आप को छुड़ाने की कोशिश करने लगी। इसी आपाधापी में उसकी एक हलकी सी चीख पूरे कमरे में गूँज गई ……
“ऊईईई… ईईईई … जीजू ये क्या कर रहे हो…….? छोड़ो मुझे … !”
मैं तो उस अप्रत्याशित आवाज को सुनकर हड़बड़ा ही गया। वो मेरी पकड़ से निकल गई और उसने दरवाजे के पास लगे लाईट के बटन को ऑन कर दिया। मैं तो मुँह बाए खड़ा ही रह गया। लाईट जलने के बाद मुझे होश आया कि मैं तो नंग धडंग ही खड़ा हूँ और मेरा 7 इंच का लण्ड कुतुबमीनार की तरह खड़ा जैसे आये हुए मेहमान को सलामी दे रहा है। मैंने झट से पास रखी लुंगी अपनी कमर पर लपेट ली।
“ओह … ब …म… दीपा तुम ?”
“जीजू … कम से कम देख तो लेना था ?”
“वो … स .. सॉरी … मुझे लगा मधु होगी ?”
“तो क्या तुम मधु के साथ भी इस तरह का जंगलीपन करते हो?”
“ओह .. सॉरी …” मैं तो कुछ बोलने की हालत में ही नहीं था।
वो मेरी लुंगी के बीच खड़े खूंटे की ओर ही घूरे जा रही थी।
“मैं तो दूध पिलाने आई थी ! मुझे क्या पता कि तुम मुझे इस तरह दबोच लोगे ? भला किसी जवान कुंवारी लड़की के साथ कोई ऐसा करता है?” उसने उलाहना देते हुए कहा।
“दीपा … सॉरी … अनजाने में ऐसा हो गया … प्लीज म … मधु से इस बात का जिक्र मत करना !” मैं हकलाता हुआ सा बोला।
मेरे मुँह से तो आवाज ही नहीं निकल रही थी, मैंने कातर नज़रों से उसकी ओर देखा।
“किस बात का जिक्र?”
“ओह… वो… वो कि मैंने मधु समझ कर तुम्हें पकड़ लिया था ना ?”
“ओह … मैं तो कुछ और ही समझी थी ?” वो हंसने लगी।
“क्या ?”
“मैं तो यह सोच रही थी कि तुम कहोगे कि कमरे में तुम्हारे नंगे खड़े होने वाली बात को मधु से ना कहूं ?” वो खिलखिला कर हंस पड़ी।
अब मेरी जान में जान आई।
“वैसे एक बात कहूं ?” उसने मुस्कुराते हुए पूछा।
“क … क्या ?”
“वैसे आप बिना कपड़ों के भी जमते हो !”
“धत्त शैतान … !”
“हुंह … एक तो मधु के कहने पर मैं दूध पिलाने आई और ऊपर से मुझे ही शैतान कह रहे हो ! धन्यवाद करना तो दूर बैठने को भी नहीं कहा ?”
“ओह… सॉरी ? प्लीज बैठो !” मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह विचित्र ब्रह्म दीपा मेम साब इतना जल्दी मिश्री की डली बन जायेगी। यह तो नाक पर मक्खी भी नहीं बैठने देती।
“जीजू एक बात पूछूँ?” वो मेरे पास ही बिस्तर पर बैठते हुए बोली।
“हम्म … ?”
“क्या वो छिपकली (मधुर) रोज़ इसी तरह तुम्हें दूध पिलाती है?”
“ओह … हाँ … पिलाती तो है !”
“ओये होए … होर नाल अपणा शहद वी पीण देंदी है ज्या नइ ?” (ओहो … और साथ में अपना मधु भी पीने देती है या नहीं) वो मंद मंद मुस्कुरा रही थी। सुधा भाभी और दीपा पटियाला के पंजाबी परिवार से हैं इसलिए कभी कभी पंजाबी भी बोल लेती हैं।
अजीब सवाल था। कहीं मधु ने इसे हमारे अन्तरंग क्षणों और प्रेम युद्ध के बारे में सब कुछ बता तो नहीं दिया? ये औरतें भी बड़ी अजीब होती हैं पति के सामने तो शर्माने का इतना नाटक करेंगी और अपनी हम उम्र सहेलियों को अपनी सारी निजी बातें रस ले ले कर बता देंगी।
“हाँ … पर तुम क्यों पूछ रही हो ?”
“उदां ई ? चल्लो कोई गल नइ ! जे तुस्सी नई दसणा चाहंदे ते कोई गल नइ … मैं जान्नी हाँ फेर ?” (ऐसे ही ? चलो तुम ना बताना चाहो तो कोई बात नहीं …। मैं जाती हूँ फिर) वो जाने के लिए खड़ी होने लगी।
मैंने झट से उसकी बांह पकड़ते हुए फिर से बैठते हुए कहा,”ओह … तुम तो नाराज़ हो गई? वो … दरअसल … भगवान् ने पति पत्नी का रिश्ता ही ऐसा बनाया है !”
“अच्छाजी … होर बदले विच्च तुस्सी की पिलांदे ओ?” (अच्छाजी … और बदले में आप क्या पिलाते हो) वो मज़ाक करते हुए बोली।
हे लिंग महादेव ! यह किस दूध मलाई और शहद की बात कर रही है ? अब तो शक की कोई गुंजाइश ही नहीं रह गई थी। लगता है मधुर ने इसे हमारी सारी अन्तरंग बातें बता दी हैं। जरुर इसके मन भी कुछ कुलबुला रहा है। मैं अगर थोड़ा सा प्रयास करूँ तो शायद यह पटियाला पटाका मेरी बाहों में आ ही जाए।
“ओह .. जब तुम्हारी शादी हो जायेगी तब अपने आप सब पता लग जाएगा !” मैंने कहा।
“कि पता कोई लल्लू जिहा टक्कर गिया ताँ ?” (क्या पता कोई लल्लू टकर गया तो)
“अरे भई ! तुम इतनी खूबसूरत हो ! तुम्हें कोई लल्लू कैसे टकराएगा ?”
“ओह … मैं कित्थे खूबसूरत हाँ जी ?” (ओह… मैं कहाँ खूबसूरत हूँ जी)
मैं जानता था उसके मन में अभी भी उस बात की टीस (मलाल) है कि मैंने उसकी जगह मधु को शादी के लिए क्यों चुना था। यह स्त्रीगत ईर्ष्या होती ही है, और फिर दीपा भी तो आखिर एक स्त्री ही है अलग कैसे हो सकती है।
“दीपा एक बात सच कहूं ?”
“हम्म… ?”
“दीपा तुम्हारी फिगर … मेरा मतलब है खासकर तुम्हारे नितम्ब बहुत खूबसूरत हैं !”
“क्यों उस मधुमक्खी के कम हैं क्या ?”
“अरे नहीं यार तुम्हारे मुकाबले में उसके कहाँ ?”वो कुछ सोचती जा रही थी। मैं उसके मन की उथल पुथल को अच्छी तरह समझ रहा था।
मैंने अगला तीर छोड़ा,”दीपा मेम साब, सच कहता हूँ अगर तुम थोड़ी देर नहीं चीखती या बोलती तो आज … तो बस ….?”
“बस … की ?” (बस क्या ?)
“वो … वो … छोड़ो … मधु को क्या हुआ वो क्यों नहीं आई ?” मैंने जान बूझ कर विषय बदलने की कोशिश की। क्या पता चिड़िया नाराज़ ही ना हो जाए।
“किउँ … मेरा आणा चंगा नइ लग्या ?” (क्या मेरा आणा अच्छा नहीं लगा ?)
“ओह… अरे नहीं बाबा वो बात नहीं है … मेरी साली साहिबा जी !”
“पता नहीं खाना खाने के बाद से ही उसे सरदर्द हो रहा था या बहाना मार रही थी सो गई और फिर सुधा दीदी ने मुझे आपको दूध पिला आने को कहा …”
“ओह तो पिला दो ना ?” मैंने उसके मम्मों (उरोजों) को घूरते हुए कहा।
“पर आप तो दूध की जगह मुझे ही पकड़ कर पता नहीं कुछ और करने के फिराक में थे ?”
“तो क्या हुआ साली भी तो आधी घरवाली ही होती है !”
“अई हई … जनाब इहो जे मंसूबे ना पालणा ? मैं पटियाला दी शेरनी हाँ ? इदां हत्थ आउन वाली नइ जे ?” (ओये होए जनाब इस तरह के मंसूबे मत पालना ? मैं पटियाला की शेरनी हूँ इस तरह हाथ आने वाली नहीं हूँ)
“हाय मेरी पटियाला की मोरनी मैं जानता हूँ … पता है पटियाला के बारे में दो चीजें बहुत मशहूर हैं ?”
“क्या ?”
“पटियाला पैग और पटियाला सलवार ?”
“हम्म … कैसे ?”
“एक चढ़ती जल्दी है और एक उतरती जल्दी है !”
“ओये होए … वड्डे आये सलवार लाऽऽन आले ?”
“पर मेरी यह शेरनी आधी गुजराती भी तो है ?” (दीपा गुजरात के अहमदाबाद शहर से एम बी ए कर रही है)
“तो क्या हुआ ?”
“भई गुजराती लड़कियाँ बहुत बड़े दिल वाली होती हैं। अपने प्रेमीजनों का बहुत ख़याल रखती हैं।”
“अच्छाजी … तो क्या आप भी जीजू के स्थान पर अब प्रेमीजन बनना चाहते हैं ?”
“तो इसमें बुरा क्या है?”
“जेकर ओस कोड़किल्ली नू पता लग गिया ते ओ शहद दी मक्खी वांग तुह्हानूं कट खावेगी ?” (अगर उस छिपकली को पता चल गया तो वो मधु मक्खी की तरह आपको काट खाएगी) वो मधुर की बात कर रही थी।
“कोई बात नहीं ! तुम्हारे इस शहद के बदले मधु मक्खी काट भी खाए तो कोई नुक्सान वाला सौदा नहीं है !” कहते हुए मैंने उसका हाथ पकड़ लिया।
मेरा अनुमान था वो अपना हाथ छुड़ा लेगी। पर उसने अपना हाथ छुड़ाने का थोड़ा सा प्रयास करते हुए कहा,”ओह … छोड़ो जीजू क्या करते हो … कोई देख लेगा … चलो दूध पी लो फिर मुझे जाना है !”
“मधु की तरह तुम अपने हाथों से पिला दो ना ?”
“वो कैसे … मेरा मतलब मधु कैसे पिलाती है मुझे क्या पता ?”
मेरे मन में तो आया कह दूं ‘अपनी नाइटी खोलो और इन अमृत कलशों में भरा जो ताज़ा दूध छलक रहा है उसे ही पिला दो’ पर मैंने कहा,”वो पहले गिलास अपने होंठों से लगा कर इसे मधुर बनाती है फिर मैं पीता हूँ !”
“अच्छाजी … पर मुझे तो दूध अच्छा नहीं लगता मैं तो मलाई की शौक़ीन हूँ !”
“कोई बात नहीं तुम मलाई भी खा लेना !” मैंने हंसते हुए कहा।
मुझे लगा चिड़िया दाना चुगने के लिए अपने पैर जाल की ओर बढ़ाने लगी है, उसने थर्मस खोल कर गिलास में दूध डाला और फिर गिलास मेरी ओर बढ़ा दिया।
“दीपा प्लीज तुम भी इस दूध का एक घूँट पी लो ना?”
“क्यों ?”
“मुझे बहुत अच्छा लगेगा !”
उसने दूध का एक घूँट भरा और फिर गिलास मेरी ओर बढ़ा दिया।
मैंने ठीक उसी जगह पर अपने होंठ लगाए जहां पर दीपा के होंठ लगे थे। दीपा मुझे हैरानी से देखती हुई मंद मंद मुस्कुराने लगी थी। किसी लड़की को प्रभावित करने के यह टोटके मेरे से ज्यादा भला कौन जानता होगा।
“वाह दीपा मेम साब, तुम्हारे होंठों का मधु तो बहुत ही लाजवाब है यार ?”
“हाय ओ रब्बा … हटो परे … कोई कल्ली कुंवारी कुड़ी दे नाल इहो जी गल्लां करदा है ?” (हे भगवान् हटो परे कोई अकेली कुंवारी लड़की के साथ ऐसी बात करता है क्या) वो तो मारे शर्म ले गुलज़ार ही हो गई।
“मैं सच कहता हूँ तुम्हारे होंठों में तो बस मधु भरा पड़ा है। काश ! मैं इनका थोड़ा सा मधु चुरा सकता !”
“तुमने ऐसी बातें की तो मैं चली जाउंगी !” उसने अपनी आँखें तरेरी।
“ओह … दीपा , सच में तुम्हारे होंठ और उरोज बहुत खूबसूरत हैं … पता नहीं किसके नसीब में इनका रस चूसना लिखा है।”
“जीजू तुम फिर ….? मैं जाती हूँ !”
वो जाने का कह तो रही थी पर मुझे पता था उसकी आँखों में भी लाल डोरे तैरने लगे हैं। बस मन में सोच रही होगी आगे बढ़े या नहीं। अब तो मुझे बस थोड़ा सा प्रयास और करना है और फिर तो यह पटियाला की शेरनी बकरी बनते देर नहीं लगाएगी।
“दीपा चलो दूध ना पिलाओ ! एक बार अपने होंठों का मधु तो चख लेने दो प्लीज ?”
“ना बाबा ना … केहो जी गल्लां करदे ओ … किस्से ने वेख लया ते ? होर फेर की पता होंठां दे मधु दे बहाने तुसी कुज होर ना कर बैठो ?” (ना बाबा ना … कैसी बातें करते हो किसी ने देख लिया तो ? और तुम क्या पता होंठों का मधु पीते पीते कुछ और ना कर बैठो)
“ओह .. सॉरी …” मैं तो कुछ बोलने की हालत में ही नहीं था।
वो मेरी लुंगी के बीच खड़े खूंटे की ओर ही घूरे जा रही थी।
“मैं तो दूध पिलाने आई थी ! मुझे क्या पता कि तुम मुझे इस तरह दबोच लोगे ? भला किसी जवान कुंवारी लड़की के साथ कोई ऐसा करता है?” उसने उलाहना देते हुए कहा।
“दीपा … सॉरी … अनजाने में ऐसा हो गया … प्लीज म … मधु से इस बात का जिक्र मत करना !” मैं हकलाता हुआ सा बोला।
मेरे मुँह से तो आवाज ही नहीं निकल रही थी, मैंने कातर नज़रों से उसकी ओर देखा।
“किस बात का जिक्र?”
“ओह… वो… वो कि मैंने मधु समझ कर तुम्हें पकड़ लिया था ना ?”
“ओह … मैं तो कुछ और ही समझी थी ?” वो हंसने लगी।
“क्या ?”
“मैं तो यह सोच रही थी कि तुम कहोगे कि कमरे में तुम्हारे नंगे खड़े होने वाली बात को मधु से ना कहूं ?” वो खिलखिला कर हंस पड़ी।
अब मेरी जान में जान आई।
“वैसे एक बात कहूं ?” उसने मुस्कुराते हुए पूछा।
“क … क्या ?”
“वैसे आप बिना कपड़ों के भी जमते हो !”
“धत्त शैतान … !”
“हुंह … एक तो मधु के कहने पर मैं दूध पिलाने आई और ऊपर से मुझे ही शैतान कह रहे हो ! धन्यवाद करना तो दूर बैठने को भी नहीं कहा ?”
“ओह… सॉरी ? प्लीज बैठो !” मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा था कि यह विचित्र ब्रह्म दीपा मेम साब इतना जल्दी मिश्री की डली बन जायेगी। यह तो नाक पर मक्खी भी नहीं बैठने देती।
“जीजू एक बात पूछूँ?” वो मेरे पास ही बिस्तर पर बैठते हुए बोली।
“हम्म … ?”
“क्या वो छिपकली (मधुर) रोज़ इसी तरह तुम्हें दूध पिलाती है?”
“ओह … हाँ … पिलाती तो है !”
“ओये होए … होर नाल अपणा शहद वी पीण देंदी है ज्या नइ ?” (ओहो … और साथ में अपना मधु भी पीने देती है या नहीं) वो मंद मंद मुस्कुरा रही थी। सुधा भाभी और दीपा पटियाला के पंजाबी परिवार से हैं इसलिए कभी कभी पंजाबी भी बोल लेती हैं।
अजीब सवाल था। कहीं मधु ने इसे हमारे अन्तरंग क्षणों और प्रेम युद्ध के बारे में सब कुछ बता तो नहीं दिया? ये औरतें भी बड़ी अजीब होती हैं पति के सामने तो शर्माने का इतना नाटक करेंगी और अपनी हम उम्र सहेलियों को अपनी सारी निजी बातें रस ले ले कर बता देंगी।
“हाँ … पर तुम क्यों पूछ रही हो ?”
“उदां ई ? चल्लो कोई गल नइ ! जे तुस्सी नई दसणा चाहंदे ते कोई गल नइ … मैं जान्नी हाँ फेर ?” (ऐसे ही ? चलो तुम ना बताना चाहो तो कोई बात नहीं …। मैं जाती हूँ फिर) वो जाने के लिए खड़ी होने लगी।
मैंने झट से उसकी बांह पकड़ते हुए फिर से बैठते हुए कहा,”ओह … तुम तो नाराज़ हो गई? वो … दरअसल … भगवान् ने पति पत्नी का रिश्ता ही ऐसा बनाया है !”
“अच्छाजी … होर बदले विच्च तुस्सी की पिलांदे ओ?” (अच्छाजी … और बदले में आप क्या पिलाते हो) वो मज़ाक करते हुए बोली।
हे लिंग महादेव ! यह किस दूध मलाई और शहद की बात कर रही है ? अब तो शक की कोई गुंजाइश ही नहीं रह गई थी। लगता है मधुर ने इसे हमारी सारी अन्तरंग बातें बता दी हैं। जरुर इसके मन भी कुछ कुलबुला रहा है। मैं अगर थोड़ा सा प्रयास करूँ तो शायद यह पटियाला पटाका मेरी बाहों में आ ही जाए।
“ओह .. जब तुम्हारी शादी हो जायेगी तब अपने आप सब पता लग जाएगा !” मैंने कहा।
“कि पता कोई लल्लू जिहा टक्कर गिया ताँ ?” (क्या पता कोई लल्लू टकर गया तो)
“अरे भई ! तुम इतनी खूबसूरत हो ! तुम्हें कोई लल्लू कैसे टकराएगा ?”
“ओह … मैं कित्थे खूबसूरत हाँ जी ?” (ओह… मैं कहाँ खूबसूरत हूँ जी)
मैं जानता था उसके मन में अभी भी उस बात की टीस (मलाल) है कि मैंने उसकी जगह मधु को शादी के लिए क्यों चुना था। यह स्त्रीगत ईर्ष्या होती ही है, और फिर दीपा भी तो आखिर एक स्त्री ही है अलग कैसे हो सकती है।
“दीपा एक बात सच कहूं ?”
“हम्म… ?”
“दीपा तुम्हारी फिगर … मेरा मतलब है खासकर तुम्हारे नितम्ब बहुत खूबसूरत हैं !”
“क्यों उस मधुमक्खी के कम हैं क्या ?”
“अरे नहीं यार तुम्हारे मुकाबले में उसके कहाँ ?”वो कुछ सोचती जा रही थी। मैं उसके मन की उथल पुथल को अच्छी तरह समझ रहा था।
मैंने अगला तीर छोड़ा,”दीपा मेम साब, सच कहता हूँ अगर तुम थोड़ी देर नहीं चीखती या बोलती तो आज … तो बस ….?”
“बस … की ?” (बस क्या ?)
“वो … वो … छोड़ो … मधु को क्या हुआ वो क्यों नहीं आई ?” मैंने जान बूझ कर विषय बदलने की कोशिश की। क्या पता चिड़िया नाराज़ ही ना हो जाए।
“किउँ … मेरा आणा चंगा नइ लग्या ?” (क्या मेरा आणा अच्छा नहीं लगा ?)
“ओह… अरे नहीं बाबा वो बात नहीं है … मेरी साली साहिबा जी !”
“पता नहीं खाना खाने के बाद से ही उसे सरदर्द हो रहा था या बहाना मार रही थी सो गई और फिर सुधा दीदी ने मुझे आपको दूध पिला आने को कहा …”
“ओह तो पिला दो ना ?” मैंने उसके मम्मों (उरोजों) को घूरते हुए कहा।
“पर आप तो दूध की जगह मुझे ही पकड़ कर पता नहीं कुछ और करने के फिराक में थे ?”
“तो क्या हुआ साली भी तो आधी घरवाली ही होती है !”
“अई हई … जनाब इहो जे मंसूबे ना पालणा ? मैं पटियाला दी शेरनी हाँ ? इदां हत्थ आउन वाली नइ जे ?” (ओये होए जनाब इस तरह के मंसूबे मत पालना ? मैं पटियाला की शेरनी हूँ इस तरह हाथ आने वाली नहीं हूँ)
“हाय मेरी पटियाला की मोरनी मैं जानता हूँ … पता है पटियाला के बारे में दो चीजें बहुत मशहूर हैं ?”
“क्या ?”
“पटियाला पैग और पटियाला सलवार ?”
“हम्म … कैसे ?”
“एक चढ़ती जल्दी है और एक उतरती जल्दी है !”
“ओये होए … वड्डे आये सलवार लाऽऽन आले ?”
“पर मेरी यह शेरनी आधी गुजराती भी तो है ?” (दीपा गुजरात के अहमदाबाद शहर से एम बी ए कर रही है)
“तो क्या हुआ ?”
“भई गुजराती लड़कियाँ बहुत बड़े दिल वाली होती हैं। अपने प्रेमीजनों का बहुत ख़याल रखती हैं।”
“अच्छाजी … तो क्या आप भी जीजू के स्थान पर अब प्रेमीजन बनना चाहते हैं ?”
“तो इसमें बुरा क्या है?”
“जेकर ओस कोड़किल्ली नू पता लग गिया ते ओ शहद दी मक्खी वांग तुह्हानूं कट खावेगी ?” (अगर उस छिपकली को पता चल गया तो वो मधु मक्खी की तरह आपको काट खाएगी) वो मधुर की बात कर रही थी।
“कोई बात नहीं ! तुम्हारे इस शहद के बदले मधु मक्खी काट भी खाए तो कोई नुक्सान वाला सौदा नहीं है !” कहते हुए मैंने उसका हाथ पकड़ लिया।
मेरा अनुमान था वो अपना हाथ छुड़ा लेगी। पर उसने अपना हाथ छुड़ाने का थोड़ा सा प्रयास करते हुए कहा,”ओह … छोड़ो जीजू क्या करते हो … कोई देख लेगा … चलो दूध पी लो फिर मुझे जाना है !”
“मधु की तरह तुम अपने हाथों से पिला दो ना ?”
“वो कैसे … मेरा मतलब मधु कैसे पिलाती है मुझे क्या पता ?”
मेरे मन में तो आया कह दूं ‘अपनी नाइटी खोलो और इन अमृत कलशों में भरा जो ताज़ा दूध छलक रहा है उसे ही पिला दो’ पर मैंने कहा,”वो पहले गिलास अपने होंठों से लगा कर इसे मधुर बनाती है फिर मैं पीता हूँ !”
“अच्छाजी … पर मुझे तो दूध अच्छा नहीं लगता मैं तो मलाई की शौक़ीन हूँ !”
“कोई बात नहीं तुम मलाई भी खा लेना !” मैंने हंसते हुए कहा।
मुझे लगा चिड़िया दाना चुगने के लिए अपने पैर जाल की ओर बढ़ाने लगी है, उसने थर्मस खोल कर गिलास में दूध डाला और फिर गिलास मेरी ओर बढ़ा दिया।
“दीपा प्लीज तुम भी इस दूध का एक घूँट पी लो ना?”
“क्यों ?”
“मुझे बहुत अच्छा लगेगा !”
उसने दूध का एक घूँट भरा और फिर गिलास मेरी ओर बढ़ा दिया।
मैंने ठीक उसी जगह पर अपने होंठ लगाए जहां पर दीपा के होंठ लगे थे। दीपा मुझे हैरानी से देखती हुई मंद मंद मुस्कुराने लगी थी। किसी लड़की को प्रभावित करने के यह टोटके मेरे से ज्यादा भला कौन जानता होगा।
“वाह दीपा मेम साब, तुम्हारे होंठों का मधु तो बहुत ही लाजवाब है यार ?”
“हाय ओ रब्बा … हटो परे … कोई कल्ली कुंवारी कुड़ी दे नाल इहो जी गल्लां करदा है ?” (हे भगवान् हटो परे कोई अकेली कुंवारी लड़की के साथ ऐसी बात करता है क्या) वो तो मारे शर्म ले गुलज़ार ही हो गई।
“मैं सच कहता हूँ तुम्हारे होंठों में तो बस मधु भरा पड़ा है। काश ! मैं इनका थोड़ा सा मधु चुरा सकता !”
“तुमने ऐसी बातें की तो मैं चली जाउंगी !” उसने अपनी आँखें तरेरी।
“ओह … दीपा , सच में तुम्हारे होंठ और उरोज बहुत खूबसूरत हैं … पता नहीं किसके नसीब में इनका रस चूसना लिखा है।”
“जीजू तुम फिर ….? मैं जाती हूँ !”
वो जाने का कह तो रही थी पर मुझे पता था उसकी आँखों में भी लाल डोरे तैरने लगे हैं। बस मन में सोच रही होगी आगे बढ़े या नहीं। अब तो मुझे बस थोड़ा सा प्रयास और करना है और फिर तो यह पटियाला की शेरनी बकरी बनते देर नहीं लगाएगी।
“दीपा चलो दूध ना पिलाओ ! एक बार अपने होंठों का मधु तो चख लेने दो प्लीज ?”
“ना बाबा ना … केहो जी गल्लां करदे ओ … किस्से ने वेख लया ते ? होर फेर की पता होंठां दे मधु दे बहाने तुसी कुज होर ना कर बैठो ?” (ना बाबा ना … कैसी बातें करते हो किसी ने देख लिया तो ? और तुम क्या पता होंठों का मधु पीते पीते कुछ और ना कर बैठो)
“ओह … दीपा , सच में तुम्हारे होंठ और उरोज बहुत खूबसूरत हैं … पता नहीं किसके नसीब में इनका रस चूसना लिखा है।”
“जीजू तुम फिर ….? मैं जाती हूँ !”
वो जाने का कह तो रही थी पर मुझे पता था उसकी आँखों में भी लाल डोरे तैरने लगे हैं। बस मन में सोच रही होगी आगे बढ़े या नहीं। अब तो मुझे बस थोड़ा सा प्रयास और करना है और फिर तो यह पटियाला की शेरनी बकरी बनते देर नहीं लगाएगी।
“दीपा चलो दूध ना पिलाओ ! एक बार अपने होंठों का मधु तो चख लेने दो प्लीज ?”
“ना बाबा ना … केहो जी गल्लां करदे ओ … किस्से ने वेख लया ते ? होर फेर की पता होंठां दे मधु दे बहाने तुसी कुज होर ना कर बैठो ?” (ना बाबा ना … कैसी बातें करते हो किसी ने देख लिया तो ? और तुम क्या पता होंठों का मधु पीते पीते कुछ और ना कर बैठो)
अब मैं इतना फुद्दू भी नहीं था कि इस फुलझड़ी का खुला इशारा न समझता। मैंने झट से उठ कर दरवाजा बंद कर लिया।
और फिर मैंने उसे झट से अपनी बाहों में भर लिया। उसके कांपते होंठ मेरे प्यासे होंठों के नीचे दब कर पिसने लगे। वो भी मुझे जोर जोर से चूमने लगी। उसकी साँसें बहुत तेज़ हो गई थी और उसने भी मुझे कस कर अपनी बाहों में भींच लिया। उसके रसीले मोटे मोटे होंठों का मधु पीते हुए मैं तो यही सोचता जा रहा था कि इसके नीचे वाले होंठ भी इतने ही मोटे और रस से भरे होंगे।
वो तो इतनी उतावली लग रही थी कि उसने अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी जिसे मैं कुल्फी की तरह चूसने लगा। कभी कभी मैं भी अपनी जीभ उसके मुँह में डाल देता तो वो भी उसे जोर जोर से चूसने लगती। धीरे धीरे मैंने अप एक हाथ से उसके उरोजों को भी मसलने लगा। अब तो उसकी मीठी सीत्कारें ही निकलने लगी थी। मैंने एक हाथ उसके वर्जित क्षेत्र की ओर बढाया तब वह चौंकी।
“ओह … नो … जीजू… यह क्या करने लगे … यह वर्जित क्षेत्र है इसे छूने की इजाजत नहीं है … बस बस … बस इस से आगे नहीं … आह … !”
“देखो तुम गुजरात में पढ़ती हो और पता है गांधीजी भी गुजरात से ही थे ?”
“तो क्या हुआ ? वो तो बेचारे अहिंसा के पुजारी थे?”
“ओह …. नहीं उन्होंने एक और बात भी कही थी !”
“क्या ?”
“अरे मेरी सोनियो … बेचारे गांधीजी ने तो यह कहा है कोई भी चूत अछूत नहीं होती !”
“धत्त … हाई रब्बा .. ? किहो जी गल्लां करदे हो जी ?” वो खिलखिला कर हंस पड़ी।
मैंने उसकी नाइटी के ऊपर से ही उसकी चूत पर हाथ फिराना चालू कर दिया। उसने पेंटी नहीं पहनी थी। मोटी मोटी फांकों वाली झांटों से लकदक चूत तो रस से लबालब भरी थी।
“ऊईइ … माआआआ ……. ओह … ना बाबा … ना … मुझे डर लग रहा है तुम कुछ और कर बैठोगे ? आह …रुको … उईइ इ … …माँ …….!”
अब तो मेरा एक हाथ उसकी नाइटी के अन्दर उसकी चूत तक पहुँच गया। वो तो उछल ही पड़ी,”ओह … जीजू … रुको … आह …”
दोस्तो ! अब तो पटियाले की यह मोरनी खुद कुकडू कूँ बोलने को तैयार थी। मैं जानता था वो पूरी तरह गर्म हो चुकी है। और अब इस पटियाले के पटोले को (कुड़ी को) कटी पतंग बनाने का समय आ चुका है। मैंने उसकी नाइटी को ऊपर करते हुए अपना हाथ उसकी जाँघों के बीच डाल कर उसकी चूत की दरार में अपनी अंगुली फिराई और फिर उसके रस भरे छेद में डाल दी। उसकी चूत तो रस से जैसे लबालब भरी थी। चूत पर लम्बी लम्बी झांटों का अहसास पाते ही मेरा लण्ड तो झटके ही खाने लगा था।
एक बात तो आप भी जानते होंगे कि पंजाबी लड़कियाँ अपनी चूत के बालों को बहुत कम काटती हैं। मैंने कहीं पढ़ा था कि पंजाबी लोग काली काली झांटों वाली चूत के बहुत शौक़ीन होते हैं।
मैंने अपनी अंगुली को दो तीन बार उसके रसीले छेद में अन्दर-बाहर कर दिया।
“ओहो … प्लीज … छोड़ो मुझे … आह … रुको …एक मिनट …!” उसने मुझे परे धकेल दिया।
मुझे लगा हाथ आई चिड़िया फुर्र हो जायेगी। पर उसने झट से अपनी नाइटी निकाल फैंकी और मुझे नीचे धकेलते हुए मेरे ऊपर आ गई। मेरी कमर से बंधी लुंगी तो कब की शहीद हो चुकी थी। उसने अपनी दोनों जांघें मेरी कमर के दोनों ओर कर ली और मेरे लण्ड को हाथ में पकड़ कर अपनी चूत पर रगड़ने लगी। मुझे तो लगा मैं अपने होश खो बैठूँगा। मैंने उसे अपनी बाहों में जकड़ लेना चाहा।
“ओये मेरे अनमोल रत्तन रुक ते सईं … ?” (मेरे पप्पू थोड़ा रुको तो सही)
और फिर उसने मेरे लण्ड का सुपर अपनी चूत के छेद से लगाया और फिर अपने नितम्बों को एक झटके के साथ नीचे कर दिया। 7 इंच का पूरा लण्ड एक ही घस्से में अन्दर समां गया।
“ईईईईईईईईईईइ ….. या … !!”
कुछ देर वो ऐसे ही मेरे लण्ड पर विराजमान रही। उसकी आँखें तो बंद थी पर उसके चहरे पर दर्द के साथ गर्वीली विजय मुस्कान थिरक रही थी। और फिर उसने अपनी कमर को होले होले ऊपर नीचे करना चालू कर दिया। साथ में मीठी आहें भी करने लगी।
“ओह .. जीजू तुसी वी ना … इक नंबर दे गिरधारी लाल ई हो ?” (ओह जीजू तुम भी ना … एक नंबर के फुद्दू ही हो)
“कैसे ?”
“किन्नी देर टन मेरी फुद्दी विच्च बिच्छू कट्ट रये ने होर तुहानू दुद्द पीण दी पई है ?” (कितनी देर से मेरी चूत में बिच्छू काट रहे हैं और तुम्हें दूध पीने की पड़ी है।)
मैं क्या बोलता। मेरी तो उसने बोलती बंद कर दी थी।
“जीजू तुम फिर ….? मैं जाती हूँ !”
वो जाने का कह तो रही थी पर मुझे पता था उसकी आँखों में भी लाल डोरे तैरने लगे हैं। बस मन में सोच रही होगी आगे बढ़े या नहीं। अब तो मुझे बस थोड़ा सा प्रयास और करना है और फिर तो यह पटियाला की शेरनी बकरी बनते देर नहीं लगाएगी।
“दीपा चलो दूध ना पिलाओ ! एक बार अपने होंठों का मधु तो चख लेने दो प्लीज ?”
“ना बाबा ना … केहो जी गल्लां करदे ओ … किस्से ने वेख लया ते ? होर फेर की पता होंठां दे मधु दे बहाने तुसी कुज होर ना कर बैठो ?” (ना बाबा ना … कैसी बातें करते हो किसी ने देख लिया तो ? और तुम क्या पता होंठों का मधु पीते पीते कुछ और ना कर बैठो)
अब मैं इतना फुद्दू भी नहीं था कि इस फुलझड़ी का खुला इशारा न समझता। मैंने झट से उठ कर दरवाजा बंद कर लिया।
और फिर मैंने उसे झट से अपनी बाहों में भर लिया। उसके कांपते होंठ मेरे प्यासे होंठों के नीचे दब कर पिसने लगे। वो भी मुझे जोर जोर से चूमने लगी। उसकी साँसें बहुत तेज़ हो गई थी और उसने भी मुझे कस कर अपनी बाहों में भींच लिया। उसके रसीले मोटे मोटे होंठों का मधु पीते हुए मैं तो यही सोचता जा रहा था कि इसके नीचे वाले होंठ भी इतने ही मोटे और रस से भरे होंगे।
वो तो इतनी उतावली लग रही थी कि उसने अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी जिसे मैं कुल्फी की तरह चूसने लगा। कभी कभी मैं भी अपनी जीभ उसके मुँह में डाल देता तो वो भी उसे जोर जोर से चूसने लगती। धीरे धीरे मैंने अप एक हाथ से उसके उरोजों को भी मसलने लगा। अब तो उसकी मीठी सीत्कारें ही निकलने लगी थी। मैंने एक हाथ उसके वर्जित क्षेत्र की ओर बढाया तब वह चौंकी।
“ओह … नो … जीजू… यह क्या करने लगे … यह वर्जित क्षेत्र है इसे छूने की इजाजत नहीं है … बस बस … बस इस से आगे नहीं … आह … !”
“देखो तुम गुजरात में पढ़ती हो और पता है गांधीजी भी गुजरात से ही थे ?”
“तो क्या हुआ ? वो तो बेचारे अहिंसा के पुजारी थे?”
“ओह …. नहीं उन्होंने एक और बात भी कही थी !”
“क्या ?”
“अरे मेरी सोनियो … बेचारे गांधीजी ने तो यह कहा है कोई भी चूत अछूत नहीं होती !”
“धत्त … हाई रब्बा .. ? किहो जी गल्लां करदे हो जी ?” वो खिलखिला कर हंस पड़ी।
मैंने उसकी नाइटी के ऊपर से ही उसकी चूत पर हाथ फिराना चालू कर दिया। उसने पेंटी नहीं पहनी थी। मोटी मोटी फांकों वाली झांटों से लकदक चूत तो रस से लबालब भरी थी।
“ऊईइ … माआआआ ……. ओह … ना बाबा … ना … मुझे डर लग रहा है तुम कुछ और कर बैठोगे ? आह …रुको … उईइ इ … …माँ …….!”
अब तो मेरा एक हाथ उसकी नाइटी के अन्दर उसकी चूत तक पहुँच गया। वो तो उछल ही पड़ी,”ओह … जीजू … रुको … आह …”
दोस्तो ! अब तो पटियाले की यह मोरनी खुद कुकडू कूँ बोलने को तैयार थी। मैं जानता था वो पूरी तरह गर्म हो चुकी है। और अब इस पटियाले के पटोले को (कुड़ी को) कटी पतंग बनाने का समय आ चुका है। मैंने उसकी नाइटी को ऊपर करते हुए अपना हाथ उसकी जाँघों के बीच डाल कर उसकी चूत की दरार में अपनी अंगुली फिराई और फिर उसके रस भरे छेद में डाल दी। उसकी चूत तो रस से जैसे लबालब भरी थी। चूत पर लम्बी लम्बी झांटों का अहसास पाते ही मेरा लण्ड तो झटके ही खाने लगा था।
एक बात तो आप भी जानते होंगे कि पंजाबी लड़कियाँ अपनी चूत के बालों को बहुत कम काटती हैं। मैंने कहीं पढ़ा था कि पंजाबी लोग काली काली झांटों वाली चूत के बहुत शौक़ीन होते हैं।
मैंने अपनी अंगुली को दो तीन बार उसके रसीले छेद में अन्दर-बाहर कर दिया।
“ओहो … प्लीज … छोड़ो मुझे … आह … रुको …एक मिनट …!” उसने मुझे परे धकेल दिया।
मुझे लगा हाथ आई चिड़िया फुर्र हो जायेगी। पर उसने झट से अपनी नाइटी निकाल फैंकी और मुझे नीचे धकेलते हुए मेरे ऊपर आ गई। मेरी कमर से बंधी लुंगी तो कब की शहीद हो चुकी थी। उसने अपनी दोनों जांघें मेरी कमर के दोनों ओर कर ली और मेरे लण्ड को हाथ में पकड़ कर अपनी चूत पर रगड़ने लगी। मुझे तो लगा मैं अपने होश खो बैठूँगा। मैंने उसे अपनी बाहों में जकड़ लेना चाहा।
“ओये मेरे अनमोल रत्तन रुक ते सईं … ?” (मेरे पप्पू थोड़ा रुको तो सही)
और फिर उसने मेरे लण्ड का सुपर अपनी चूत के छेद से लगाया और फिर अपने नितम्बों को एक झटके के साथ नीचे कर दिया। 7 इंच का पूरा लण्ड एक ही घस्से में अन्दर समां गया।
“ईईईईईईईईईईइ ….. या … !!”
कुछ देर वो ऐसे ही मेरे लण्ड पर विराजमान रही। उसकी आँखें तो बंद थी पर उसके चहरे पर दर्द के साथ गर्वीली विजय मुस्कान थिरक रही थी। और फिर उसने अपनी कमर को होले होले ऊपर नीचे करना चालू कर दिया। साथ में मीठी आहें भी करने लगी।
“ओह .. जीजू तुसी वी ना … इक नंबर दे गिरधारी लाल ई हो ?” (ओह जीजू तुम भी ना … एक नंबर के फुद्दू ही हो)
“कैसे ?”
“किन्नी देर टन मेरी फुद्दी विच्च बिच्छू कट्ट रये ने होर तुहानू दुद्द पीण दी पई है ?” (कितनी देर से मेरी चूत में बिच्छू काट रहे हैं और तुम्हें दूध पीने की पड़ी है।)
मैं क्या बोलता। मेरी तो उसने बोलती बंद कर दी थी।
“लो हूँण
पी लो मर्ज़ी आये उन्ना दुद्ध !” (लो अब पी लो जितना मर्ज़ी आये दूध) कहते
हए उसने अपने एक उरोज को मेरे होंठों पर लगा दिया और फिर नितम्बों से एक
कोर का धक्का लगा दिया .
अब तो वो पूरी मास्टरनी लग रही थी। मैंने किसी आज्ञाकारी बालक की तरह उसके उरोजों को चूसना चालू कर दिया। वो आह … ओह्ह . करती जा रही थी। उसकी चूत तो अन्दर से इस प्रकार संकोचन कर रही थी कि मुझे लगा जैसे यह अन्दर ही अन्दर मेरे लण्ड को निचोड़ रही है। चूत के अन्दर की दीवारों का संकुचन और गर्मी अपने लण्ड पर महसूस करते हुए मुझे लगा मैं तो जल्दी ही झड़ जाऊँगा। मैं उसे अपने नीचे लेकर तसल्ली से चोदना चाहता था पर वो तो आह ऊँह करती अपनी कमर और मोटे मोटे नितम्बों से झटके ही लगाती जा रही थी। मैंने उसके नितम्बों पर हाथ फिरना चालू कर दिया। अब मैंने उसकी गाण्ड का छेद टटोलने की कोशिश की।
“आह… उईइ… इ … माँ ……. जीजू बहुत मज़ा आ रहा है … आह…”
“दीपा तुम्हारी चूत बहुत मजेदार है !”
“एक बात बताओ ?”
“क … क्या ?”
“तुमने उस छिपकली को पहली रात में कितनी बार रगड़ा था ?”
“ओह … 2-3 बार … पर तुम क्यों पूछ रही हो ?”
“हाई … ओ रब्बा ?”
“क्यों क्या हुआ ?”
“वो मधु तो बता रही थी .. आह … कि … कि … बस एक बार ही किया था ?”
‘साली मधु की बच्ची ’ मेरे मुँह से निकलते निकलते बचा। इतने में मेरी अंगुली उसकी गाण्ड के खुलते बंद होते छेद से जा टकराई। उसकी गाण्ड का छेद तो पहले से ही गीला और चिकना हो रहा था। मैंने पहले तो अपनी अंगुली उस छेद पर फिराई और फिर उसे उसकी गाण्ड में डाल दी। वो तो चीख ही पड़ी।
“अबे … ओये भेन दे टके … ओह … की करदा ए ( क्या करते हो … ?)”
“क्यों क्या हुआ ?”
“ओह … अभी इसे मत छेड़ो … ?”
“क्यों ?”
“क्या वो मधु मक्खी तुम्हें गाण्ड नहीं मारने देती क्या ?”
“ना यार बहुत मिन्नतें करता हूँ पर मानती ही नहीं !”
“इक नंबर दी फुदैड़ हैगी … ? नखरे करदी है … होर तुसी वि निरे नन्द लाल हो … किसे दिन फड़ के ठोक दओ” (एक नंबर क़ी चुदक्कड़ है वो … नखरे करती है .। ? तुम भी निरे लल्लू हो किसी दिन पकड़ कर पीछे से ठोक क्यों नहीं देते ?) कहते हुए उसने अपनी चूत को मेरे लण्ड पर घिसना शुरू कर दिया जैसे कोई सिल बट्टे पर चटनी पीसता है। ऐसा तो कई बार जब मधु बहुत उत्तेजित होती है तब वह इसी तरह अपनी चूत को मेरे लण्ड पर रगड़ती है।
“ठीक है मेरी जान … आह … !” मैंने कस कर उसे अपनी बाहों में भींच लिया। मैं अपने दबंग लण्ड से उसकी चूत को किरची किरची कर देना चाहता था। मज़े ले ले कर देर तक उसे चोदना चाहता था पर जिस तरीके से वह अपनी चूत को मेरे लण्ड पर घिस और रगड़ रही थी और अन्दर ही अन्दर संकोचन कर रही थी मुझे लगा मैं अभी शिखर पर पहुंच जाऊँगा और मेरी पिचकारी फूट जायेगी।
“आईईईईईईईईईईई … जीजू क्या तुम ऊपर नहीं आओगे ?” कहते हुए उसने पलटने का प्रयास किया।
मेरी अजीब हालत थी। मुझे लगा कि मेरे सुपारे में बहुत भारीपन सा आने लगा है और किसी भी समय मेरा तोता उड़ सकता है। मैं झट उसके ऊपर आ गया और उसके उरोजों को पकड़ कर मसलते हुए धक्के लगाने लगा। उसने अपनी जांघें खोल दी और अपने पैर ऊपर उठा लिए।
अभी मैंने 3-4 धक्के ही लगाए थे कि मेरी पिचकारी फूट गई। मैंने उसे कसकर अपनी बाहों में जकड़ लिया। वो तो चाह रही थी मैं जोर जोर से धक्के लगाऊं पर अब मैं क्या कर सकता था। मैं उसके ऊपर ही पसर गया।
“ओह … खस्सी परांठे … ?”मेरी अजीब हालत थी। मुझे लगा कि मेरे सुपारे में बहुत भारीपन सा आने लगा है और किसी भी समय मेरा तोता उड़ सकता है। मैं झट उसके ऊपर आ गया और उसके उरोजों को पकड़ कर मसलते हुए धक्के लगाने लगा। उसने अपनी जांघें खोल दी और अपने पैर ऊपर उठा लिए।
अभी मैंने 3-4 धक्के ही लगाए थे कि मेरी पिचकारी फूट गई। मैंने उसे कसकर अपनी बाहों में जकड़ लिया। वो तो चाह रही थी मैं जोर जोर से धक्के लगाऊं पर अब मैं क्या कर सकता था। मैं उसके ऊपर ही पसर गया।
“ओह … खस्सी परांठे … ?”
मैंने अभी तक 5-7 लड़कियों और औरतों को चोद चुका था और मधु के साथ तो मेरा 30-35 मिनिट का रिकॉर्ड रहता है। पर अपने जीवन में आज पहली बार मुझे अपने ऊपर शर्मिंदगी का सा अहसास हुआ। हालांकि कई बार अधिक उत्तेजना में और किसी लड़की के साथ प्रथम सम्भोग में ऐसा हो जाता है पर मैंने तो सपने में भी ऐसा नहीं सोचा था। शायद इसका एक कारण यह भी था कि मैं पिछले 10-12 दिनों से भरा बैठा था और मेरा रस छलकने को उतावला था।
मैं उसके ऊपर से हट गया। वो आँखें बंद किये लेटी रही।
थोड़ी देर बाद वो भी उठ कर बैठ गई।”ओह … जीजू … तुम तो बहुत जल्दी आउट हो गए … मैं तो सोच रही थी कि सैंकड़ा (धक्कों का शतक) तो जरूर लगाओगे ?”
“ओह… सॉरी …. दीपा !”
“ओह …मेरे लटूरी दास मैं ते कच्ची भुन्नी ई रह गई ना ?” (मैं तो मजधार में ही रह गई ना)
“दीपा … पर कई बार अच्छे अच्छे बैट्स में भी जीरो पर आउट हो जाते हैं ?”
“यह क्यों नहीं कहते कि मेरी बालिंग शानदार थी ?” उसने हँसते हुए कहा।
“हाँ … दीपा वाकई तुम्हारी बालिंग बहुत जानदार थी …”
“और पिच ?”
“तुम्हारी तो दोनों ही पिचें (चूत और गाण्ड) एक दम झकास हैं … पर क्या दूसरी पारी का मौका नहीं मिलेगा?”
“जाओ जी … पहली पारी विच्च ते कुज कित्ता न इ हूँण दूजी पारी विच्च किहड़ा तीर मार लोवोगे ? किते एस वार वी क्लीन बोल्ड ना हो जाना ?” (जाओ जी पहली पारी में तो कुछ किया नहीं अब दूसरी पारी में कौन सा तीर मार लोगे कहीं इस बार भी क्लीन बोल्ड ना हो जाना)
“चलो लगी शर्त ?” कह कर मैंने उसे फिर से अपनी बाहों में भर लेना चाहा।
“ओके .. चलो मंजूर है … पर थोड़ी देर रुको मैं बाथरूम हो के आती हूँ।” कहते हुए वो बाथरूम की ओर चली गई।
बाथरूम की ओर जाते समय पीछे से उसके भारी और गोल मटोल नितम्बों की थिरकन देख कर तो मेरे दिल पर छुर्रियाँ ही चलने लगी। मैं जानता था पंजाबी लड़कियाँ गाण्ड भी बड़े प्यार से मरवा लेती हैं। और वैसे भी आजकल की लड़कियाँ शादी से पहले चूत मरवाने से तो परहेज करती हैं पर गाण्ड मरवाने के लिए अक्सर राज़ी हो जाती हैं। आप तो जानते ही हैं मैं गाण्ड मारने का कितना शौक़ीन हूँ। बस मधु ही मेरी इस इच्छा को पूरी नहीं करती थी बाकी तो मैंने जितनी भी लड़कियों या औरतों को चोदा है उनकी गाण्ड भी जरुर मारी है। इतनी खूबसूरत सांचे में ढली मांसल गाण्ड तो मैंने आज तक नहीं देखी थी। काश यह भी आज राज़ी हो जाए तो कसम से मैं तो इसकी जिन्दगी भर के लिए गुलामी ही कर लूं।
कोई दस मिनट के बाद वो बाथरूम से बाहर आई। मैं बिस्तर पर अपने पैर नीचे लटकाए बैठा था। वो मेरे पास आकर अपनी कमर पर हाथ रख कर खड़ी हो गई। मैंने उसकी कमर पकड़ कर उसे अपनी ओर खींच लिया। काली घुंघराली झांटों से लकदक चूत के बीच की गुलाबी फांकें तो ऐसे लग रही थी जैसे किसी बादल की ओट से ईद का चाँद नुदीपा हो रहा हो। उसकी चूत ठीक मेरे मुँह के सामने थी। एक मादक महक मेरी नाक में समां गई। लगता था उसने कोई सुगन्धित क्रीम या तेल लगाया था। मैंने उसकी चूत को पहले तो सूंघ और फिर होले से अपनी जीभ फिराने लगा। उसने मेरा सिर पकड़ लिया और मीठी सीत्कार करने लगी। जैसे जैसे मैं उसकी चूत पर अपनी जीभ फिरता वो अपने नितम्बों को हिलाने लगी और आह … ऊँह … उईइ … करने लगी।
हालांकि उसकी चूत की लीबिया (भीतरी कलिकाएँ) बहुत छोटी थी पर मैंने उन्हें अपने दांतों के बीच दबा लिया तो उत्तेजना के मारे उसकी तो चीख ही निकलते निकलते बची। उसने मेरा सिर पकड़ कर अपना एक पैर ऊपर उठाया और अपनी जांघ मेरे कंधे पर रख दी। इससे उसकी चूत की दरार और नितम्बों की खाई और ज्यादा खुल गई। मैं अब फर्श पर अपने पंजों के बल बैठ गया। मैंने एक हाथ से उसकी कमर पकड़ ली और दूसरा हाथ उसके नितम्बों की खाई में फिराने लगा। मुझे उसकी गाण्ड के छेड़ पर कुछ चिकनाई सी महसूस हुई। शायद उसने वहाँ भी कोई क्रीम जरुर लगाई थी। मेरा लण्ड तो इसी ख्याल से फिर से अकड़ने लगा। उसने मेरा सिर अपने हाथों में पकड़ कर बिस्तर के किनारे से लगा दिया और फिर पता नहीं उसे क्या सूझा, उसने अपना दूसरा पैर और दोनों हाथ बिस्तर पर रख लिए और फिर अपनी चूत को मेरे मुँह पर रगड़ने लगी।
“ईईईईईईईईईईईइ …….” उसकी कामुक किलकारी पूरे कमरे में गूँज गई।
और उसके साथ ही मेरे मुँह में शहद की कुछ बूँदें टपक पड़ी। मैं उसकी चूत को एक बार फिर से मुँह में भर लेना चाहता था पर इससे पहले कि मैं कुछ करता वो बिस्तर पर लुढ़क गई और अपने पेट के बल लेट कर जोर जोर से हांफने लगी।
अब मैं उठकर बिस्तर पर आ गया और उसके ऊपर आते हुए उसे कस कर अपनी बाहों में भर लिया। मेरा खूंटे की तरह खड़ा लण्ड उसके नितम्बों के बीच जा टकराया। मैंने अपने हाथ नीचे किये और उसके उरोजों को पकड़ कर मसलना चालू कर दिया। साथ में उसकी गर्दन और कानों के पास चुम्बन भी लेने लगा। कुंवारी गाण्ड की खुशबू पाते ही मेरा लण्ड तो उसमें जाने के लिए उछलने ही लगा था। मैंने अंदाज़े से एक धक्का लगा दिया पर लण्ड थोड़ा सा ऊपर की ओर फिसल गया। उसने अपने नितम्ब थोड़े से ऊपर उठा दिए और जांघें भी चौड़ी कर दी। मैंने एक धक्का और लगाया पर इस बार लण्ड नीचे की ओर फिसल कर चूत में प्रवेश कर गया।मैंने अपने घुटनों को थोड़ा सा मोड़ लिया और फिर 4-5 धक्के और लगा दिए। दीपा तो आह… ऊँह … या रब्बा.. करती ही रह गई। जैसे ही मैं धक्का लगाने को होता वो अपने नितम्बों को थोडा सा और ऊपर उठा देती और फिच्च की आवाज के साथ लण्ड उसकी चूत में जड़ तक समां जाता। हम दोनों को मज़ा तो आ रहा था पर मुझे लगा उसे कुछ असुविधा सी हो रही है।
“जीजू … ऐसे नहीं ..!”
“ओह … दीपा बड़ा मज़ा आ रहा है … !”
“एक मिनट रुको तो सही.. मैं घुटनों के बल हो जाती हूँ।”
और फिर वो अपने घुटनों के बल हो गई। हमने यह ध्यान जरुर रखा कि लण्ड चूत से बाहर ना निकले। अब मैंने उसकी कमर पकड़ ली और जोर जोर से धक्के लगाने लगा। हर धक्के के साथ उसके नितम्ब थिरक जाते और उसकी मीठी सीत्कार निकलती। अब तो वह भी मेरे हर धक्के के साथ अपने नितम्बों को पीछे करने लगी थी। मैं कभी उसके नितम्बों पर थप्पड़ लगता कभी अपना एक हाथ नीचे करके उसकी चूत के अनार दाने को रगदने लगता तो वो जोर जोर आह ……… याआअ … उईईईईईईइ … रब्बा करने लगती।
अब मेरा ध्यान उसके गाण्ड के छेद पर गया। उस पर चिकनाई सी लगी थी और वो कभी खुलता कभी बंद होता ऐसे लग रहा था जैसे मेरी ओर आँख मार कर मुझे निमंत्रण दे रहा हो। मैंने अपने अंगूठे पर थूक लगाया और फिर उस खुलते बंद होते छेद पर मसलने लगा। मैंने दूसरे हाथ से नीचे उसकी चूत का अनारदाना भी मसलना चालू रखा। वो जोर जोर से अपने नितम्बों को हिलाने लगी थी। मुझे लगा वो फिर झड़ने वाली है। मैंने अपना अंगूठा उसकी गाण्ड के नर्म छेद में डाल दिया। छेद तो पहले से ही चिकना था और उत्तेजना के मारे ढीला सा हो गया था मेरा आधा अंगूठा अन्दर चला गया उस के साथ ही दीपा की किलकारी गूँज गई,”ऊईईईईईईई …. माँ ………… ओये … ओह … रुको …. !”
उसने मेरी कलाई पकड़ कर मेरा हाथ हटाने की कोशिश की पर मैंने अपने अंगूठे को दो तीन बार अन्दर बाहर कर ही दिया साथ में उसके दाने को भी मसलता रहा। और उसके साथ ही मुझे लगा मेरे लण्ड के चारों ओर चिकना लिसलिसा सा द्रव्य लग गया है। एक सित्कार के साथ दीपा धड़ाम से नीचे गिर पड़ी और मैं भी उसके ऊपर ही गिर पड़ा।
उसकी साँसें बहुत तेज़ चल रही थी और उसका शरीर कुछ झटके से खा रहा था। मैं कुछ देर उसके ऊपर ही लेता रहा। मेरा पानी अभी नहीं निकला था। मैंने फिर से एक धक्का लगाया।
“ओह … जीजू … अब बस करो … आह … और नहीं … बस …!”
“मेरी जान अभी तो अर्ध शतक भी नहीं हुआ ?”
“ओह … गोली मारो शतकाँ नूँ मेरी ते हालत खराब हो गई । आह … !” वो कसमसाने सी लगी। ऐसा करने से मेरा लण्ड फिसल कर बाहर आ गया और फिर वो पलट कर सीधी हो गई।
“इस बार तुमने मुझे कच्चा भुना छोड़ दिया …?” मैंने उलाहना देते हुए कहा।
“नहीं जीजू बस अब और नहीं … मैं बहुत थक गई हूँ … तुमने तो मेरी हड्डियाँ ही चटका दी हैं।”
“पर मैं इसका क्या करूँ ? यह तो ऐसे मानेगा नहीं ?” मैंने अपने तन्नाये (खड़े) लण्ड की ओर इशारा करते हुए कहा।
“ओह… कोई गल्ल नइ मैं इन्नु मना लेन्नी हाँ..?” उसने मेरे लण्ड को अपनी मुट्ठी में भींच लिया और उसे ऊपर नीचे करने लगी।
“दीपा ऐसे नहीं इसे मुँह में लेकर चूसो ना प्लीज ?”
“ओये होए मैं सदके जावां … मेरे गिरधारी लाल …?”
और फिर उसने मेरे लण्ड का टोपा अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी। क्या कमाल का लण्ड चूसती है साली पूरी लण्डखोर लगती है ? उसके मुँह की लज्जत तो उसकी चूत से भी ज्यादा मजेदार थी।
मेरा तो मन करने लगा इसका सर पकड़ कर पूरा अन्दर गले तक ठोक कर अपना सारा माल इसके मुँह में ही उंडेल दूं पर मैंने अपना इरादा बदल लिया।
आप शायद हैरान हो रहे होंगे ? ओह…. दर असल मैं एक बार लगते हाथों उसकी गाण्ड भी मारना चाहता था। उसने कोई 4-5 मिनट ही मेरे लण्ड को चूसा होगा और फिर उसने मेरा लण्ड मुँह से बाहर निकाल दिया।
“जिज्जू मेरा तो गला भी दुखने लगा है !”
“पर तुमने तो शर्त लगाई थी ?”
“केहड़ी शर्त ?” (कौन सी शर्त)
“कि इस बार मुझे अपनी शानदार बोवलिंग से फिर आउट कर दोगी ?”
“ओह मेरी तो फुद्दी और गला दोनों दुखने लगे हैं ?”
“पर भगवान् ने लड़की को एक और छेद भी तो दिया है ?”
“कि मतलब ?”
“अरे मेरी चंपाकलि तुम्हारी गाण्ड का छेद भी तो एक दम पटाका है ?”
“तुस्सी पागल ते नइ होए ?”मेरा तो मन करने लगा इसका सर पकड़ कर पूरा अन्दर गले तक ठोक कर अपना सारा माल इसके मुँह में ही उंडेल दूं पर मैंने अपना इरादा बदल लिया।
आप शायद हैरान हो रहे होंगे ? ओह…. दर असल मैं एक बार लगते हाथों उसकी गाण्ड भी मारना चाहता था। उसने कोई 4-5 मिनट ही मेरे लण्ड को चूसा होगा और फिर उसने मेरा लण्ड मुँह से बाहर निकाल दिया।
“जिज्जू मेरा तो गला भी दुखने लगा है !”
“पर तुमने तो शर्त लगाई थी ?”
“केहड़ी शर्त ?” (कौन सी शर्त)
“कि इस बार मुझे अपनी शानदार बोवलिंग से फिर आउट कर दोगी ?”
“ओह मेरी तो फुद्दी और गला दोनों दुखने लगे हैं !”
“पर भगवान् ने लड़की को एक और छेद भी तो दिया है ?”
“की मतलब ?”
“अरे मेरी चंपाकलि तुम्हारी गाण्ड का छेद भी तो एक दम पटाका है !”
“तुस्सी पागल ते नइ होए ?”
“अरे मेरी छमक छल्लो एक बार इसका मज़ा तो लेकर देखो … तुम तो दीवानी बन जाओगी !”
“ना … बाबा … ना … तुम तो मुझे मार ही डालोगे … देखो यह कितना मोटा और खूंखार लग रहा है !”
“मेरी सोनियो ! इसे तो जन्नत का दूसरा दरवाज़ा कहते हैं। इसमें जो आनंद मिलता है दुनिया की किसी दूसरी क्रिया में नहीं मिलता !”
वो मेरे लण्ड को हाथ में पकड़े घूरे जा रही थी। मैं उसके मन की हालत जानता था। कोई भी लड़की पहली बार चुदवाने और गाण्ड मरवाने के लिए इतना जल्दी अपने आप को मानसिक रूप से तैयार नहीं कर पाती। पर मेरा अनुमान था वो थोड़ी ना नुकर के बाद मान जायेगी।
“फिर तुमने उस मधु मक्खी को बिना गाण्ड मारे कैसे छोड़ दिया ?”
“ओह… वो दरअसल उसकी चूत और मुँह दोनों जल्दी नहीं थकते इसलिए गाण्ड मारने की नौबत ही नहीं आई !”
“साली इक्क नंबर दी लण्डखोर हैगी !” उसने बुरा सा मुँह बनाया।
“दीपा सच कहता हूँ इसमें लड़कियों को भी बहुत मज़ा आता है ?”
“पर मैंने तो सुना है इसमें बहुत दर्द होता है ?”
“तुमने किस से सुना है ?”
“वो .. मेरी एक सहेली है .. वो बता रही थी कि जब भी उसका बॉयफ्रेंड उसकी गाण्ड मारता है तो उसे बड़ा दर्द होता है।”
“अरे मेरी पटियाला की मोरनी तुम खुद ही सोचो अगर ऐसा होता तो वो बार बार उसे अपनी गाण्ड क्यों मारने देती है ?”
“हाँ यह बात तो तुमने सही कही !”
बस अब तो मेरी सारी बाधाएं अपने आप दूर हो गई थी। गाण्ड मारने का रास्ता निष्कंटक (साफ़) हो गया था। मैंने झट से उसे अपनी बाहों में दबोच लिया। वो तो उईईईईईई …. करती ही रह गई।
“जीजू मुझे डर लग रहा है ….। प्लीज धीरे धीरे करना !”
“अरे मेरी बुलबुल मेरी सोनिये तू बिल्कुल चिंता मत कर .. यह गाण्ड चुदाई तो तुम्हें जिन्दगी भर याद रहेगी !”
वह पेट के बल लेट गई और उसने अपने नितम्ब फिर से ऊपर उठा दिए। मैंने स्टूल पर पड़ी पड़ी क्रीम की डब्बी उठाई और ढेर सारी क्रीम उसकी गाण्ड के छेद पर लगा दी। फिर धीरे से एक अंगुली उसकी गाण्ड के छेद में डालकर अन्दर-बाहर करने लगा। रोमांच और डर के मारे उसने अपनी गाण्ड को अन्दर भींच सा लिया। मैंने उसे समझाया कि वो इसे बिल्कुल ढीला छोड़ दे, मैं आराम से करूँगा बिल्कुल दर्द नहीं होने दूंगा।
अब मैंने अपने गिरधारी लाल पर भी क्रीम लगा ली। पहाले तो मैंने सोचा था कि थूक से ही काम चला लूं पर फिर मुझे ख्याल आया कि चलो चूत तो हो सकता है कि पहले से चुदी हो पर गाण्ड एक दम कुंवारी और झकास है, कहीं इसे दर्द हुआ और इसने गाण्ड मरवाने से मना कर दिया तो मेरी दिली तमन्ना तो चूर चूर ही हो जायेगी। मैं कतई ऐसा नहीं चाहता था।
फिर मैंने उसे अपने दोनों हाथों से अपने नितम्बों को चौड़ा करने को कहा। उसने मेरे बताये अनुसार अपने नितम्बों को थोड़ा सा ऊपर उठाया और फिर दोनों हाथों को पीछे करते हुए नितम्बों की खाई को चौड़ा कर दिया। भूरे रंग का छोटा सा छेद तो जैसे थिरक ही रहा था। मैंने एक हाथ में अपना लण्ड पकड़ा और उस छेद पर रगड़ने लगा, फिर उसे ठीक से छेद पर टिका दिया। अब मैंने उसकी कमर पकड़ी और आगे की ओर दबाव बनाया। वो थोड़ा सा कसमसाई पर मैंने उसकी कमर को कस कर पकड़े रखा।
अब उसका छेद चौड़ा होने लगा था और मैंने महसूस किया मेरा सुपारा अन्दर सरकने लगा है।
“ऊईई .. जीजू … बस … ओह … रुको … आह … ईईईईइ ….!”
अब रुकने का क्या काम था मैंने एक धक्का लगा दिया। इसके साथ ही गच्च की आवाज के साथ आधा लण्ड गाण्ड के अन्दर समां गया। उसके साथ ही दीपा की चीख निकल गई।
“ऊईईइ ……माँ आ अ …. हाय.. म .. मर … गई इ इ इ ……… ? ओह…. अबे भोसड़ी के … ओह … साले निकाल बाहर .. आआआआआआआ ………?”
“बस मेरी जान ..”
“अबे भेन के.. लण्ड ! मेरी गाण्ड फ़ट रही है ! ”
मैं जल्दी उसके ऊपर आ गया और उसे अपनी बाहों में कस लिया। वो कसमसाने लगी थी और मेरी पकड़ से छूट जाना चाहती थी। मैं जानता था थोड़ी देर उसे दर्द जरुर होगा पर बाद में सब ठीक हो जाएगा। मैंने उसकी पीठ और गले को चूमते हुए उसे समझाया।
“बस… बस…. मेरी जान…. जो होना था हो गया !”
“जीजू, बहुत दर्द हो रहा है .. ओह … मुझे तो लग रहा है यह फट गई है प्लीज बाहर निकाल लो नहीं तो मेरी जान निकल जायेगी आया ……ईईईई … !”
मैं उसे बातों में उलझाए रखना चाहता था ताकि उसका दर्द कुछ कम हो जाए और मेरा लण्ड अन्दर समायोजित हो जाए। कहीं ऐसा ना हो कि वो बीच में ही मेरा काम खराब कर दे और मैं फिर से कच्चा भुन्ना रह जाऊं। इस बार मैं बिना शतक लगाए आउट नहीं होना चाहता था।
“दीपा तुम बहुत खूबसूरत हो .. पूरी पटाका हो यार.. मैंने आज तक तुम्हारे जैसी फिगर वाली लड़की नहीं देखी.. सच कहता हूँ तुम जिससे भी शादी करोगी पता नहीं वो कितना किस्मत वाला बन्दा होगा।”
“हुंह.. बस झूठी तारीफ रहने दो जी .. झूठे कहीं के..? तुम तो उस मधु मक्खी के दीवाने बने फिरते हो ?”
“ओह… दीपा … देखो भगवान् हम दोनों पर कितना दयालु है, उसने हम दोनों के मिलन का कितना बढ़िया रास्ता निकाल ही दिया !”“पता है, मैं तो कल ही अहमदाबाद जाने वाली थी… तुम्हारे कारण ही आज रात के लिए रुकी हूँ।”
“थैंक यू दीपा ! यू आर सो हॉट एंड स्वीट !”
मैंने उसके गले पीठ और कानों को चूम लिया। उसने अपनी गाण्ड के छल्ले का संकोचन किया तो मेरा लण्ड तो गाण्ड के अन्दर ही ठुमकने लगा।
“दीपा अब तो दर्द नहीं हो रहा ना ?”
“ओह .. थोड़ा ते हो रया है ? पर तुस्सी चिंता ना करो कि पूरा अन्दर चला गिया?”
मेरा आधा लण्ड ही अन्दर गया था पर मैं उसे यह बात नहीं बताना चाहता था। मैंने उसे गोल मोल जवाब दिया”ओह .. मेरी जान आज तो तुमने मुझे वो सुख दिया है जो मधुर ने भी कभी नहीं दिया ?”
हर लड़की विशेष रूप से प्रेमिका अपनी तुलना अपने प्रेमी की पत्नी से जरूर करती है और उसे अपने आप को खूबसूरत और बेहतर कहलवाना बहुत अच्छा लगता है। यह सब गुरु ज्ञान मेरे से ज्यादा भला कौन जान सकता है।
अब मैंने उसके उरोजों को फिर से मसलना चालू कर दिया। दीपा ने अपने नितम्ब कुछ ऊपर कर दिए और मैंने अपने लण्ड को थोड़ा सा बाहर निकला और फिर से एक हल्का धक्का लगाया तो पूरा लण्ड अन्दर विराजमान हो गया। अब तो उसे अन्दर बाहर होने में जरा भी दिक्कत नहीं हो रही थी।
गाण्ड की यही तो लज्जत और खासियत होती है। चूत का कसाव तो थोड़े दिनों की चुदाई के बाद कम होने लगता है पर गाण्ड कितनी भी बार मार ली जाए उसका कसाव हमेशा लण्ड के चारों ओर अनुभव होता ही रहता है। खेली खाई औरतों और लड़कियों को गाण्ड मरवाने में चूत से भी अधिक मज़ा आता है। इसका एक कारण यह भी है कि बहुत दिनों तक तो यह पता ही नहीं चलता कि गाण्ड कुंवारी है या चुद चुकी है। गाण्ड मारने वाले को तो यही गुमान रहता है कि उसे प्रेमिका की कुंवारी गाण्ड चोदने को मिल रही है।
अब तो दीपा भी अपने नितम्ब उचकाने लगी थी। उसका दर्द ख़त्म हो गया था और लण्ड के घर्षण से उसकी गाण्ड का छल्ला अन्दर बाहर होने से उसे बहुत मज़ा आने लगा था। अब तो वो फिर से सित्कार करने लगी थी। और अपना एक अंगूठा अपने मुँह में लेकर चूसने लगी थी और दूसरे हाथ से अपने उरोजों की घुंडी मसल रही थी।
“मेरी जान .. आह …!” मैं भी बीच बीच में उसे पुचकारता जा रहा था और मीठी सित्कार कर रहा था।
एक बात आपको जरूर बताना चाहूँगा। यह विवाद का विषय हो सकता है कि औरत को गाण्ड मरवाने में मज़ा आता है या नहीं पर उसे इस बात की ख़ुशी जरूर होती है कि उसने अपने प्रेमी या पति को इस आनंद को भोगने में सहयोग दिया है।
मैंने एक हाथ से उसके अनारदाने (भगान्कुर) को अपनी चिमटी में लेकर मसलना चालू कर दिया। दीपा तो इतनी उत्तेजित हो गई थी कि अपने नितम्बों को जोर जोर से ऊपर नीचे करने लगी।
“ओह .. जीजू एक बार पूरा डाल दो … आह … उईईईईईईईईइ …या या या ………..”
मैंने दनादन धक्के लगाने चालू कर दिए। मुझे लगा दीपा एक बार फिर से झड़ गई है। अब मैं भी किनारे पर आ गया था। आधे घंटे के घमासान के बाद अब मुझे लगने लगा था कि मेरा सैंकड़ा नहीं सवा सैंकड़ा होने वाला है। मैंने उसे अपनी बाहों में फिर से कस लिया और फिर 5-7 धक्के और लगा दिए। उसके साथ ही दीपा की चित्कार और मेरी पिचकारी एक साथ फूट गई।
कोई 5-6 मिनट हम इसी तरह पड़े रहे। जब मेरा लण्ड फिसल कर बाहर आ गया तो मैं उसके ऊपर से उठ कर बैठ गया। दीपा भी उठ बैठी। वो मुस्कुरा कर मेरी ओर देख रही थी जैसे पूछ रही थी कि उसकी दूसरी पिच कैसी थी।
“दीपा इस अनुपम भेंट के लिए तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद !”
“हाई मैं मर जांवां .. सदके जावां ? मेरे भोले बलमा !”
“थैंक यू दीपा ” कहते हुए मैंने अपनी बाहें उसकी ओर बढ़ा दी।
“जीजू तुम सच कहते थे .. बहुत मज़ा आया !” उसने मेरे गले में अपनी बाहें डाल दी। मैंने एक बार फिर से उसके होंठों को चूम लिया।
“जिज्जू, तुम्हारी यह बैटिंग तो मुझे जिन्दगी भर याद रहेगी ! पता नहीं ऐसी चुदाई फिर कभी नसीब होगी या नहीं ?”
“अरे मेरी पटियाला दी पटोला मैं तो रोज़ ऐसी ही बैटिंग करने को तैयार हूँ बस तुम्हारी हाँ की जरुरत है !”
“ओये होए .. वो मधु मक्खी तुम्हें खा जायेगी ?” कहते हुए दीपा अपनी नाइटी उठा कर नीचे भाग गई।
और फिर मैं भी लुंगी तान कर सो गया।
मेरे प्रिय पाठको और पाठिकाओ आपको यह”दीपा मेम कैसी लगी मुझे बताएँगे ना ?
अब तो वो पूरी मास्टरनी लग रही थी। मैंने किसी आज्ञाकारी बालक की तरह उसके उरोजों को चूसना चालू कर दिया। वो आह … ओह्ह . करती जा रही थी। उसकी चूत तो अन्दर से इस प्रकार संकोचन कर रही थी कि मुझे लगा जैसे यह अन्दर ही अन्दर मेरे लण्ड को निचोड़ रही है। चूत के अन्दर की दीवारों का संकुचन और गर्मी अपने लण्ड पर महसूस करते हुए मुझे लगा मैं तो जल्दी ही झड़ जाऊँगा। मैं उसे अपने नीचे लेकर तसल्ली से चोदना चाहता था पर वो तो आह ऊँह करती अपनी कमर और मोटे मोटे नितम्बों से झटके ही लगाती जा रही थी। मैंने उसके नितम्बों पर हाथ फिरना चालू कर दिया। अब मैंने उसकी गाण्ड का छेद टटोलने की कोशिश की।
“आह… उईइ… इ … माँ ……. जीजू बहुत मज़ा आ रहा है … आह…”
“दीपा तुम्हारी चूत बहुत मजेदार है !”
“एक बात बताओ ?”
“क … क्या ?”
“तुमने उस छिपकली को पहली रात में कितनी बार रगड़ा था ?”
“ओह … 2-3 बार … पर तुम क्यों पूछ रही हो ?”
“हाई … ओ रब्बा ?”
“क्यों क्या हुआ ?”
“वो मधु तो बता रही थी .. आह … कि … कि … बस एक बार ही किया था ?”
‘साली मधु की बच्ची ’ मेरे मुँह से निकलते निकलते बचा। इतने में मेरी अंगुली उसकी गाण्ड के खुलते बंद होते छेद से जा टकराई। उसकी गाण्ड का छेद तो पहले से ही गीला और चिकना हो रहा था। मैंने पहले तो अपनी अंगुली उस छेद पर फिराई और फिर उसे उसकी गाण्ड में डाल दी। वो तो चीख ही पड़ी।
“अबे … ओये भेन दे टके … ओह … की करदा ए ( क्या करते हो … ?)”
“क्यों क्या हुआ ?”
“ओह … अभी इसे मत छेड़ो … ?”
“क्यों ?”
“क्या वो मधु मक्खी तुम्हें गाण्ड नहीं मारने देती क्या ?”
“ना यार बहुत मिन्नतें करता हूँ पर मानती ही नहीं !”
“इक नंबर दी फुदैड़ हैगी … ? नखरे करदी है … होर तुसी वि निरे नन्द लाल हो … किसे दिन फड़ के ठोक दओ” (एक नंबर क़ी चुदक्कड़ है वो … नखरे करती है .। ? तुम भी निरे लल्लू हो किसी दिन पकड़ कर पीछे से ठोक क्यों नहीं देते ?) कहते हुए उसने अपनी चूत को मेरे लण्ड पर घिसना शुरू कर दिया जैसे कोई सिल बट्टे पर चटनी पीसता है। ऐसा तो कई बार जब मधु बहुत उत्तेजित होती है तब वह इसी तरह अपनी चूत को मेरे लण्ड पर रगड़ती है।
“ठीक है मेरी जान … आह … !” मैंने कस कर उसे अपनी बाहों में भींच लिया। मैं अपने दबंग लण्ड से उसकी चूत को किरची किरची कर देना चाहता था। मज़े ले ले कर देर तक उसे चोदना चाहता था पर जिस तरीके से वह अपनी चूत को मेरे लण्ड पर घिस और रगड़ रही थी और अन्दर ही अन्दर संकोचन कर रही थी मुझे लगा मैं अभी शिखर पर पहुंच जाऊँगा और मेरी पिचकारी फूट जायेगी।
“आईईईईईईईईईईई … जीजू क्या तुम ऊपर नहीं आओगे ?” कहते हुए उसने पलटने का प्रयास किया।
मेरी अजीब हालत थी। मुझे लगा कि मेरे सुपारे में बहुत भारीपन सा आने लगा है और किसी भी समय मेरा तोता उड़ सकता है। मैं झट उसके ऊपर आ गया और उसके उरोजों को पकड़ कर मसलते हुए धक्के लगाने लगा। उसने अपनी जांघें खोल दी और अपने पैर ऊपर उठा लिए।
अभी मैंने 3-4 धक्के ही लगाए थे कि मेरी पिचकारी फूट गई। मैंने उसे कसकर अपनी बाहों में जकड़ लिया। वो तो चाह रही थी मैं जोर जोर से धक्के लगाऊं पर अब मैं क्या कर सकता था। मैं उसके ऊपर ही पसर गया।
“ओह … खस्सी परांठे … ?”मेरी अजीब हालत थी। मुझे लगा कि मेरे सुपारे में बहुत भारीपन सा आने लगा है और किसी भी समय मेरा तोता उड़ सकता है। मैं झट उसके ऊपर आ गया और उसके उरोजों को पकड़ कर मसलते हुए धक्के लगाने लगा। उसने अपनी जांघें खोल दी और अपने पैर ऊपर उठा लिए।
अभी मैंने 3-4 धक्के ही लगाए थे कि मेरी पिचकारी फूट गई। मैंने उसे कसकर अपनी बाहों में जकड़ लिया। वो तो चाह रही थी मैं जोर जोर से धक्के लगाऊं पर अब मैं क्या कर सकता था। मैं उसके ऊपर ही पसर गया।
“ओह … खस्सी परांठे … ?”
मैंने अभी तक 5-7 लड़कियों और औरतों को चोद चुका था और मधु के साथ तो मेरा 30-35 मिनिट का रिकॉर्ड रहता है। पर अपने जीवन में आज पहली बार मुझे अपने ऊपर शर्मिंदगी का सा अहसास हुआ। हालांकि कई बार अधिक उत्तेजना में और किसी लड़की के साथ प्रथम सम्भोग में ऐसा हो जाता है पर मैंने तो सपने में भी ऐसा नहीं सोचा था। शायद इसका एक कारण यह भी था कि मैं पिछले 10-12 दिनों से भरा बैठा था और मेरा रस छलकने को उतावला था।
मैं उसके ऊपर से हट गया। वो आँखें बंद किये लेटी रही।
थोड़ी देर बाद वो भी उठ कर बैठ गई।”ओह … जीजू … तुम तो बहुत जल्दी आउट हो गए … मैं तो सोच रही थी कि सैंकड़ा (धक्कों का शतक) तो जरूर लगाओगे ?”
“ओह… सॉरी …. दीपा !”
“ओह …मेरे लटूरी दास मैं ते कच्ची भुन्नी ई रह गई ना ?” (मैं तो मजधार में ही रह गई ना)
“दीपा … पर कई बार अच्छे अच्छे बैट्स में भी जीरो पर आउट हो जाते हैं ?”
“यह क्यों नहीं कहते कि मेरी बालिंग शानदार थी ?” उसने हँसते हुए कहा।
“हाँ … दीपा वाकई तुम्हारी बालिंग बहुत जानदार थी …”
“और पिच ?”
“तुम्हारी तो दोनों ही पिचें (चूत और गाण्ड) एक दम झकास हैं … पर क्या दूसरी पारी का मौका नहीं मिलेगा?”
“जाओ जी … पहली पारी विच्च ते कुज कित्ता न इ हूँण दूजी पारी विच्च किहड़ा तीर मार लोवोगे ? किते एस वार वी क्लीन बोल्ड ना हो जाना ?” (जाओ जी पहली पारी में तो कुछ किया नहीं अब दूसरी पारी में कौन सा तीर मार लोगे कहीं इस बार भी क्लीन बोल्ड ना हो जाना)
“चलो लगी शर्त ?” कह कर मैंने उसे फिर से अपनी बाहों में भर लेना चाहा।
“ओके .. चलो मंजूर है … पर थोड़ी देर रुको मैं बाथरूम हो के आती हूँ।” कहते हुए वो बाथरूम की ओर चली गई।
बाथरूम की ओर जाते समय पीछे से उसके भारी और गोल मटोल नितम्बों की थिरकन देख कर तो मेरे दिल पर छुर्रियाँ ही चलने लगी। मैं जानता था पंजाबी लड़कियाँ गाण्ड भी बड़े प्यार से मरवा लेती हैं। और वैसे भी आजकल की लड़कियाँ शादी से पहले चूत मरवाने से तो परहेज करती हैं पर गाण्ड मरवाने के लिए अक्सर राज़ी हो जाती हैं। आप तो जानते ही हैं मैं गाण्ड मारने का कितना शौक़ीन हूँ। बस मधु ही मेरी इस इच्छा को पूरी नहीं करती थी बाकी तो मैंने जितनी भी लड़कियों या औरतों को चोदा है उनकी गाण्ड भी जरुर मारी है। इतनी खूबसूरत सांचे में ढली मांसल गाण्ड तो मैंने आज तक नहीं देखी थी। काश यह भी आज राज़ी हो जाए तो कसम से मैं तो इसकी जिन्दगी भर के लिए गुलामी ही कर लूं।
कोई दस मिनट के बाद वो बाथरूम से बाहर आई। मैं बिस्तर पर अपने पैर नीचे लटकाए बैठा था। वो मेरे पास आकर अपनी कमर पर हाथ रख कर खड़ी हो गई। मैंने उसकी कमर पकड़ कर उसे अपनी ओर खींच लिया। काली घुंघराली झांटों से लकदक चूत के बीच की गुलाबी फांकें तो ऐसे लग रही थी जैसे किसी बादल की ओट से ईद का चाँद नुदीपा हो रहा हो। उसकी चूत ठीक मेरे मुँह के सामने थी। एक मादक महक मेरी नाक में समां गई। लगता था उसने कोई सुगन्धित क्रीम या तेल लगाया था। मैंने उसकी चूत को पहले तो सूंघ और फिर होले से अपनी जीभ फिराने लगा। उसने मेरा सिर पकड़ लिया और मीठी सीत्कार करने लगी। जैसे जैसे मैं उसकी चूत पर अपनी जीभ फिरता वो अपने नितम्बों को हिलाने लगी और आह … ऊँह … उईइ … करने लगी।
हालांकि उसकी चूत की लीबिया (भीतरी कलिकाएँ) बहुत छोटी थी पर मैंने उन्हें अपने दांतों के बीच दबा लिया तो उत्तेजना के मारे उसकी तो चीख ही निकलते निकलते बची। उसने मेरा सिर पकड़ कर अपना एक पैर ऊपर उठाया और अपनी जांघ मेरे कंधे पर रख दी। इससे उसकी चूत की दरार और नितम्बों की खाई और ज्यादा खुल गई। मैं अब फर्श पर अपने पंजों के बल बैठ गया। मैंने एक हाथ से उसकी कमर पकड़ ली और दूसरा हाथ उसके नितम्बों की खाई में फिराने लगा। मुझे उसकी गाण्ड के छेड़ पर कुछ चिकनाई सी महसूस हुई। शायद उसने वहाँ भी कोई क्रीम जरुर लगाई थी। मेरा लण्ड तो इसी ख्याल से फिर से अकड़ने लगा। उसने मेरा सिर अपने हाथों में पकड़ कर बिस्तर के किनारे से लगा दिया और फिर पता नहीं उसे क्या सूझा, उसने अपना दूसरा पैर और दोनों हाथ बिस्तर पर रख लिए और फिर अपनी चूत को मेरे मुँह पर रगड़ने लगी।
“ईईईईईईईईईईईइ …….” उसकी कामुक किलकारी पूरे कमरे में गूँज गई।
और उसके साथ ही मेरे मुँह में शहद की कुछ बूँदें टपक पड़ी। मैं उसकी चूत को एक बार फिर से मुँह में भर लेना चाहता था पर इससे पहले कि मैं कुछ करता वो बिस्तर पर लुढ़क गई और अपने पेट के बल लेट कर जोर जोर से हांफने लगी।
अब मैं उठकर बिस्तर पर आ गया और उसके ऊपर आते हुए उसे कस कर अपनी बाहों में भर लिया। मेरा खूंटे की तरह खड़ा लण्ड उसके नितम्बों के बीच जा टकराया। मैंने अपने हाथ नीचे किये और उसके उरोजों को पकड़ कर मसलना चालू कर दिया। साथ में उसकी गर्दन और कानों के पास चुम्बन भी लेने लगा। कुंवारी गाण्ड की खुशबू पाते ही मेरा लण्ड तो उसमें जाने के लिए उछलने ही लगा था। मैंने अंदाज़े से एक धक्का लगा दिया पर लण्ड थोड़ा सा ऊपर की ओर फिसल गया। उसने अपने नितम्ब थोड़े से ऊपर उठा दिए और जांघें भी चौड़ी कर दी। मैंने एक धक्का और लगाया पर इस बार लण्ड नीचे की ओर फिसल कर चूत में प्रवेश कर गया।मैंने अपने घुटनों को थोड़ा सा मोड़ लिया और फिर 4-5 धक्के और लगा दिए। दीपा तो आह… ऊँह … या रब्बा.. करती ही रह गई। जैसे ही मैं धक्का लगाने को होता वो अपने नितम्बों को थोडा सा और ऊपर उठा देती और फिच्च की आवाज के साथ लण्ड उसकी चूत में जड़ तक समां जाता। हम दोनों को मज़ा तो आ रहा था पर मुझे लगा उसे कुछ असुविधा सी हो रही है।
“जीजू … ऐसे नहीं ..!”
“ओह … दीपा बड़ा मज़ा आ रहा है … !”
“एक मिनट रुको तो सही.. मैं घुटनों के बल हो जाती हूँ।”
और फिर वो अपने घुटनों के बल हो गई। हमने यह ध्यान जरुर रखा कि लण्ड चूत से बाहर ना निकले। अब मैंने उसकी कमर पकड़ ली और जोर जोर से धक्के लगाने लगा। हर धक्के के साथ उसके नितम्ब थिरक जाते और उसकी मीठी सीत्कार निकलती। अब तो वह भी मेरे हर धक्के के साथ अपने नितम्बों को पीछे करने लगी थी। मैं कभी उसके नितम्बों पर थप्पड़ लगता कभी अपना एक हाथ नीचे करके उसकी चूत के अनार दाने को रगदने लगता तो वो जोर जोर आह ……… याआअ … उईईईईईईइ … रब्बा करने लगती।
अब मेरा ध्यान उसके गाण्ड के छेद पर गया। उस पर चिकनाई सी लगी थी और वो कभी खुलता कभी बंद होता ऐसे लग रहा था जैसे मेरी ओर आँख मार कर मुझे निमंत्रण दे रहा हो। मैंने अपने अंगूठे पर थूक लगाया और फिर उस खुलते बंद होते छेद पर मसलने लगा। मैंने दूसरे हाथ से नीचे उसकी चूत का अनारदाना भी मसलना चालू रखा। वो जोर जोर से अपने नितम्बों को हिलाने लगी थी। मुझे लगा वो फिर झड़ने वाली है। मैंने अपना अंगूठा उसकी गाण्ड के नर्म छेद में डाल दिया। छेद तो पहले से ही चिकना था और उत्तेजना के मारे ढीला सा हो गया था मेरा आधा अंगूठा अन्दर चला गया उस के साथ ही दीपा की किलकारी गूँज गई,”ऊईईईईईईई …. माँ ………… ओये … ओह … रुको …. !”
उसने मेरी कलाई पकड़ कर मेरा हाथ हटाने की कोशिश की पर मैंने अपने अंगूठे को दो तीन बार अन्दर बाहर कर ही दिया साथ में उसके दाने को भी मसलता रहा। और उसके साथ ही मुझे लगा मेरे लण्ड के चारों ओर चिकना लिसलिसा सा द्रव्य लग गया है। एक सित्कार के साथ दीपा धड़ाम से नीचे गिर पड़ी और मैं भी उसके ऊपर ही गिर पड़ा।
उसकी साँसें बहुत तेज़ चल रही थी और उसका शरीर कुछ झटके से खा रहा था। मैं कुछ देर उसके ऊपर ही लेता रहा। मेरा पानी अभी नहीं निकला था। मैंने फिर से एक धक्का लगाया।
“ओह … जीजू … अब बस करो … आह … और नहीं … बस …!”
“मेरी जान अभी तो अर्ध शतक भी नहीं हुआ ?”
“ओह … गोली मारो शतकाँ नूँ मेरी ते हालत खराब हो गई । आह … !” वो कसमसाने सी लगी। ऐसा करने से मेरा लण्ड फिसल कर बाहर आ गया और फिर वो पलट कर सीधी हो गई।
“इस बार तुमने मुझे कच्चा भुना छोड़ दिया …?” मैंने उलाहना देते हुए कहा।
“नहीं जीजू बस अब और नहीं … मैं बहुत थक गई हूँ … तुमने तो मेरी हड्डियाँ ही चटका दी हैं।”
“पर मैं इसका क्या करूँ ? यह तो ऐसे मानेगा नहीं ?” मैंने अपने तन्नाये (खड़े) लण्ड की ओर इशारा करते हुए कहा।
“ओह… कोई गल्ल नइ मैं इन्नु मना लेन्नी हाँ..?” उसने मेरे लण्ड को अपनी मुट्ठी में भींच लिया और उसे ऊपर नीचे करने लगी।
“दीपा ऐसे नहीं इसे मुँह में लेकर चूसो ना प्लीज ?”
“ओये होए मैं सदके जावां … मेरे गिरधारी लाल …?”
और फिर उसने मेरे लण्ड का टोपा अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगी। क्या कमाल का लण्ड चूसती है साली पूरी लण्डखोर लगती है ? उसके मुँह की लज्जत तो उसकी चूत से भी ज्यादा मजेदार थी।
मेरा तो मन करने लगा इसका सर पकड़ कर पूरा अन्दर गले तक ठोक कर अपना सारा माल इसके मुँह में ही उंडेल दूं पर मैंने अपना इरादा बदल लिया।
आप शायद हैरान हो रहे होंगे ? ओह…. दर असल मैं एक बार लगते हाथों उसकी गाण्ड भी मारना चाहता था। उसने कोई 4-5 मिनट ही मेरे लण्ड को चूसा होगा और फिर उसने मेरा लण्ड मुँह से बाहर निकाल दिया।
“जिज्जू मेरा तो गला भी दुखने लगा है !”
“पर तुमने तो शर्त लगाई थी ?”
“केहड़ी शर्त ?” (कौन सी शर्त)
“कि इस बार मुझे अपनी शानदार बोवलिंग से फिर आउट कर दोगी ?”
“ओह मेरी तो फुद्दी और गला दोनों दुखने लगे हैं ?”
“पर भगवान् ने लड़की को एक और छेद भी तो दिया है ?”
“कि मतलब ?”
“अरे मेरी चंपाकलि तुम्हारी गाण्ड का छेद भी तो एक दम पटाका है ?”
“तुस्सी पागल ते नइ होए ?”मेरा तो मन करने लगा इसका सर पकड़ कर पूरा अन्दर गले तक ठोक कर अपना सारा माल इसके मुँह में ही उंडेल दूं पर मैंने अपना इरादा बदल लिया।
आप शायद हैरान हो रहे होंगे ? ओह…. दर असल मैं एक बार लगते हाथों उसकी गाण्ड भी मारना चाहता था। उसने कोई 4-5 मिनट ही मेरे लण्ड को चूसा होगा और फिर उसने मेरा लण्ड मुँह से बाहर निकाल दिया।
“जिज्जू मेरा तो गला भी दुखने लगा है !”
“पर तुमने तो शर्त लगाई थी ?”
“केहड़ी शर्त ?” (कौन सी शर्त)
“कि इस बार मुझे अपनी शानदार बोवलिंग से फिर आउट कर दोगी ?”
“ओह मेरी तो फुद्दी और गला दोनों दुखने लगे हैं !”
“पर भगवान् ने लड़की को एक और छेद भी तो दिया है ?”
“की मतलब ?”
“अरे मेरी चंपाकलि तुम्हारी गाण्ड का छेद भी तो एक दम पटाका है !”
“तुस्सी पागल ते नइ होए ?”
“अरे मेरी छमक छल्लो एक बार इसका मज़ा तो लेकर देखो … तुम तो दीवानी बन जाओगी !”
“ना … बाबा … ना … तुम तो मुझे मार ही डालोगे … देखो यह कितना मोटा और खूंखार लग रहा है !”
“मेरी सोनियो ! इसे तो जन्नत का दूसरा दरवाज़ा कहते हैं। इसमें जो आनंद मिलता है दुनिया की किसी दूसरी क्रिया में नहीं मिलता !”
वो मेरे लण्ड को हाथ में पकड़े घूरे जा रही थी। मैं उसके मन की हालत जानता था। कोई भी लड़की पहली बार चुदवाने और गाण्ड मरवाने के लिए इतना जल्दी अपने आप को मानसिक रूप से तैयार नहीं कर पाती। पर मेरा अनुमान था वो थोड़ी ना नुकर के बाद मान जायेगी।
“फिर तुमने उस मधु मक्खी को बिना गाण्ड मारे कैसे छोड़ दिया ?”
“ओह… वो दरअसल उसकी चूत और मुँह दोनों जल्दी नहीं थकते इसलिए गाण्ड मारने की नौबत ही नहीं आई !”
“साली इक्क नंबर दी लण्डखोर हैगी !” उसने बुरा सा मुँह बनाया।
“दीपा सच कहता हूँ इसमें लड़कियों को भी बहुत मज़ा आता है ?”
“पर मैंने तो सुना है इसमें बहुत दर्द होता है ?”
“तुमने किस से सुना है ?”
“वो .. मेरी एक सहेली है .. वो बता रही थी कि जब भी उसका बॉयफ्रेंड उसकी गाण्ड मारता है तो उसे बड़ा दर्द होता है।”
“अरे मेरी पटियाला की मोरनी तुम खुद ही सोचो अगर ऐसा होता तो वो बार बार उसे अपनी गाण्ड क्यों मारने देती है ?”
“हाँ यह बात तो तुमने सही कही !”
बस अब तो मेरी सारी बाधाएं अपने आप दूर हो गई थी। गाण्ड मारने का रास्ता निष्कंटक (साफ़) हो गया था। मैंने झट से उसे अपनी बाहों में दबोच लिया। वो तो उईईईईईई …. करती ही रह गई।
“जीजू मुझे डर लग रहा है ….। प्लीज धीरे धीरे करना !”
“अरे मेरी बुलबुल मेरी सोनिये तू बिल्कुल चिंता मत कर .. यह गाण्ड चुदाई तो तुम्हें जिन्दगी भर याद रहेगी !”
वह पेट के बल लेट गई और उसने अपने नितम्ब फिर से ऊपर उठा दिए। मैंने स्टूल पर पड़ी पड़ी क्रीम की डब्बी उठाई और ढेर सारी क्रीम उसकी गाण्ड के छेद पर लगा दी। फिर धीरे से एक अंगुली उसकी गाण्ड के छेद में डालकर अन्दर-बाहर करने लगा। रोमांच और डर के मारे उसने अपनी गाण्ड को अन्दर भींच सा लिया। मैंने उसे समझाया कि वो इसे बिल्कुल ढीला छोड़ दे, मैं आराम से करूँगा बिल्कुल दर्द नहीं होने दूंगा।
अब मैंने अपने गिरधारी लाल पर भी क्रीम लगा ली। पहाले तो मैंने सोचा था कि थूक से ही काम चला लूं पर फिर मुझे ख्याल आया कि चलो चूत तो हो सकता है कि पहले से चुदी हो पर गाण्ड एक दम कुंवारी और झकास है, कहीं इसे दर्द हुआ और इसने गाण्ड मरवाने से मना कर दिया तो मेरी दिली तमन्ना तो चूर चूर ही हो जायेगी। मैं कतई ऐसा नहीं चाहता था।
फिर मैंने उसे अपने दोनों हाथों से अपने नितम्बों को चौड़ा करने को कहा। उसने मेरे बताये अनुसार अपने नितम्बों को थोड़ा सा ऊपर उठाया और फिर दोनों हाथों को पीछे करते हुए नितम्बों की खाई को चौड़ा कर दिया। भूरे रंग का छोटा सा छेद तो जैसे थिरक ही रहा था। मैंने एक हाथ में अपना लण्ड पकड़ा और उस छेद पर रगड़ने लगा, फिर उसे ठीक से छेद पर टिका दिया। अब मैंने उसकी कमर पकड़ी और आगे की ओर दबाव बनाया। वो थोड़ा सा कसमसाई पर मैंने उसकी कमर को कस कर पकड़े रखा।
अब उसका छेद चौड़ा होने लगा था और मैंने महसूस किया मेरा सुपारा अन्दर सरकने लगा है।
“ऊईई .. जीजू … बस … ओह … रुको … आह … ईईईईइ ….!”
अब रुकने का क्या काम था मैंने एक धक्का लगा दिया। इसके साथ ही गच्च की आवाज के साथ आधा लण्ड गाण्ड के अन्दर समां गया। उसके साथ ही दीपा की चीख निकल गई।
“ऊईईइ ……माँ आ अ …. हाय.. म .. मर … गई इ इ इ ……… ? ओह…. अबे भोसड़ी के … ओह … साले निकाल बाहर .. आआआआआआआ ………?”
“बस मेरी जान ..”
“अबे भेन के.. लण्ड ! मेरी गाण्ड फ़ट रही है ! ”
मैं जल्दी उसके ऊपर आ गया और उसे अपनी बाहों में कस लिया। वो कसमसाने लगी थी और मेरी पकड़ से छूट जाना चाहती थी। मैं जानता था थोड़ी देर उसे दर्द जरुर होगा पर बाद में सब ठीक हो जाएगा। मैंने उसकी पीठ और गले को चूमते हुए उसे समझाया।
“बस… बस…. मेरी जान…. जो होना था हो गया !”
“जीजू, बहुत दर्द हो रहा है .. ओह … मुझे तो लग रहा है यह फट गई है प्लीज बाहर निकाल लो नहीं तो मेरी जान निकल जायेगी आया ……ईईईई … !”
मैं उसे बातों में उलझाए रखना चाहता था ताकि उसका दर्द कुछ कम हो जाए और मेरा लण्ड अन्दर समायोजित हो जाए। कहीं ऐसा ना हो कि वो बीच में ही मेरा काम खराब कर दे और मैं फिर से कच्चा भुन्ना रह जाऊं। इस बार मैं बिना शतक लगाए आउट नहीं होना चाहता था।
“दीपा तुम बहुत खूबसूरत हो .. पूरी पटाका हो यार.. मैंने आज तक तुम्हारे जैसी फिगर वाली लड़की नहीं देखी.. सच कहता हूँ तुम जिससे भी शादी करोगी पता नहीं वो कितना किस्मत वाला बन्दा होगा।”
“हुंह.. बस झूठी तारीफ रहने दो जी .. झूठे कहीं के..? तुम तो उस मधु मक्खी के दीवाने बने फिरते हो ?”
“ओह… दीपा … देखो भगवान् हम दोनों पर कितना दयालु है, उसने हम दोनों के मिलन का कितना बढ़िया रास्ता निकाल ही दिया !”“पता है, मैं तो कल ही अहमदाबाद जाने वाली थी… तुम्हारे कारण ही आज रात के लिए रुकी हूँ।”
“थैंक यू दीपा ! यू आर सो हॉट एंड स्वीट !”
मैंने उसके गले पीठ और कानों को चूम लिया। उसने अपनी गाण्ड के छल्ले का संकोचन किया तो मेरा लण्ड तो गाण्ड के अन्दर ही ठुमकने लगा।
“दीपा अब तो दर्द नहीं हो रहा ना ?”
“ओह .. थोड़ा ते हो रया है ? पर तुस्सी चिंता ना करो कि पूरा अन्दर चला गिया?”
मेरा आधा लण्ड ही अन्दर गया था पर मैं उसे यह बात नहीं बताना चाहता था। मैंने उसे गोल मोल जवाब दिया”ओह .. मेरी जान आज तो तुमने मुझे वो सुख दिया है जो मधुर ने भी कभी नहीं दिया ?”
हर लड़की विशेष रूप से प्रेमिका अपनी तुलना अपने प्रेमी की पत्नी से जरूर करती है और उसे अपने आप को खूबसूरत और बेहतर कहलवाना बहुत अच्छा लगता है। यह सब गुरु ज्ञान मेरे से ज्यादा भला कौन जान सकता है।
अब मैंने उसके उरोजों को फिर से मसलना चालू कर दिया। दीपा ने अपने नितम्ब कुछ ऊपर कर दिए और मैंने अपने लण्ड को थोड़ा सा बाहर निकला और फिर से एक हल्का धक्का लगाया तो पूरा लण्ड अन्दर विराजमान हो गया। अब तो उसे अन्दर बाहर होने में जरा भी दिक्कत नहीं हो रही थी।
गाण्ड की यही तो लज्जत और खासियत होती है। चूत का कसाव तो थोड़े दिनों की चुदाई के बाद कम होने लगता है पर गाण्ड कितनी भी बार मार ली जाए उसका कसाव हमेशा लण्ड के चारों ओर अनुभव होता ही रहता है। खेली खाई औरतों और लड़कियों को गाण्ड मरवाने में चूत से भी अधिक मज़ा आता है। इसका एक कारण यह भी है कि बहुत दिनों तक तो यह पता ही नहीं चलता कि गाण्ड कुंवारी है या चुद चुकी है। गाण्ड मारने वाले को तो यही गुमान रहता है कि उसे प्रेमिका की कुंवारी गाण्ड चोदने को मिल रही है।
अब तो दीपा भी अपने नितम्ब उचकाने लगी थी। उसका दर्द ख़त्म हो गया था और लण्ड के घर्षण से उसकी गाण्ड का छल्ला अन्दर बाहर होने से उसे बहुत मज़ा आने लगा था। अब तो वो फिर से सित्कार करने लगी थी। और अपना एक अंगूठा अपने मुँह में लेकर चूसने लगी थी और दूसरे हाथ से अपने उरोजों की घुंडी मसल रही थी।
“मेरी जान .. आह …!” मैं भी बीच बीच में उसे पुचकारता जा रहा था और मीठी सित्कार कर रहा था।
एक बात आपको जरूर बताना चाहूँगा। यह विवाद का विषय हो सकता है कि औरत को गाण्ड मरवाने में मज़ा आता है या नहीं पर उसे इस बात की ख़ुशी जरूर होती है कि उसने अपने प्रेमी या पति को इस आनंद को भोगने में सहयोग दिया है।
मैंने एक हाथ से उसके अनारदाने (भगान्कुर) को अपनी चिमटी में लेकर मसलना चालू कर दिया। दीपा तो इतनी उत्तेजित हो गई थी कि अपने नितम्बों को जोर जोर से ऊपर नीचे करने लगी।
“ओह .. जीजू एक बार पूरा डाल दो … आह … उईईईईईईईईइ …या या या ………..”
मैंने दनादन धक्के लगाने चालू कर दिए। मुझे लगा दीपा एक बार फिर से झड़ गई है। अब मैं भी किनारे पर आ गया था। आधे घंटे के घमासान के बाद अब मुझे लगने लगा था कि मेरा सैंकड़ा नहीं सवा सैंकड़ा होने वाला है। मैंने उसे अपनी बाहों में फिर से कस लिया और फिर 5-7 धक्के और लगा दिए। उसके साथ ही दीपा की चित्कार और मेरी पिचकारी एक साथ फूट गई।
कोई 5-6 मिनट हम इसी तरह पड़े रहे। जब मेरा लण्ड फिसल कर बाहर आ गया तो मैं उसके ऊपर से उठ कर बैठ गया। दीपा भी उठ बैठी। वो मुस्कुरा कर मेरी ओर देख रही थी जैसे पूछ रही थी कि उसकी दूसरी पिच कैसी थी।
“दीपा इस अनुपम भेंट के लिए तुम्हारा बहुत बहुत धन्यवाद !”
“हाई मैं मर जांवां .. सदके जावां ? मेरे भोले बलमा !”
“थैंक यू दीपा ” कहते हुए मैंने अपनी बाहें उसकी ओर बढ़ा दी।
“जीजू तुम सच कहते थे .. बहुत मज़ा आया !” उसने मेरे गले में अपनी बाहें डाल दी। मैंने एक बार फिर से उसके होंठों को चूम लिया।
“जिज्जू, तुम्हारी यह बैटिंग तो मुझे जिन्दगी भर याद रहेगी ! पता नहीं ऐसी चुदाई फिर कभी नसीब होगी या नहीं ?”
“अरे मेरी पटियाला दी पटोला मैं तो रोज़ ऐसी ही बैटिंग करने को तैयार हूँ बस तुम्हारी हाँ की जरुरत है !”
“ओये होए .. वो मधु मक्खी तुम्हें खा जायेगी ?” कहते हुए दीपा अपनी नाइटी उठा कर नीचे भाग गई।
और फिर मैं भी लुंगी तान कर सो गया।
मेरे प्रिय पाठको और पाठिकाओ आपको यह”दीपा मेम कैसी लगी मुझे बताएँगे ना ?
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